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________________ 158 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य अवश्य कोई बन-बीज दुःसहा महान आपत्ति उपस्थिता हुई।' कथावस्तु में एक दो जगह कवि के हाथ से इतिहास का सर्व सम्मत डोर छूट गया है, जैसे-रात्रि का चतुर्याम चल रहा है और रानी त्रिशला को स्वप्न देखने का क्षण जग रहा है, उस समय आधुनिक वातावरण से सुसंगत कल्पना की है कि तीन का घण्टा बजनेवाला है और नीलाभ में स्वप्नों की बोली छूटनेवाली है-'प्रभात घण्टा अब तीन का बजा, किन्हें करेगी क्रय भूप-योषिते। उसी प्रकार सागर में आलोड़ित होती हुई 'व्हेल मछली' को त्रिशला स्वप्न में देखती है। 'अलक्ष्येन्द्रमानव (सिकंदर) की उपमा-भी ऐतिहासिक क्रम-सत्य से दूर है-'सम्हाल ले जो पथ वर्तमान का, वही अलक्ष्येन्द्र-समान हो। (304-76) उसी प्रकार त्रिशला को 'नवार्जिका-सी' कहने पर जैन आर्यकाओं की वेशभूषा सम्बंध में भ्रम मालूम होता है। स्थानकवासी साधु की उपमा भी गलत-समयक्रम-भंग करने वाली है। ये चारों उल्लेख भगवान महावीर के ऐतिहासिक काल से सुसंबद्धित नहीं है, क्योंकि उस समय ऐसी उपमाओं और कल्पनाओं का आधार अस्तित्व हीन था। लेकिन यदि इतिहास की बात छोड़ दी जाय तो ये चारों उपमाएं सुन्दर और यथार्थ है। इतिहास की सत्यता के भंग में यदि कहना चाहें तो कह सकते हैं कि ऐतिहासिक सत्य से भी एक ओर काव्यगत सत्य होता है, जो अधिक रोचक, भावप्रवण और पाठक के मन को मुग्ध करनेवाला होता है। अतः ऐसी गलतियों के सामने विशेष कटुता नहीं होनी चाहिए। कवि का भावगत सत्य काव्य हो यदि अत्यन्त रोचक व रसपूर्ण बनाता हो तो ऐतिहासिक सत्य की थोड़ी-बहुत उपेक्षा सह्य होनी चाहिए। क्योंकि काव्यगत सौन्दर्य का मूल्य रस-शोधक पाठक के लिए ऐतिहासिक सत्य से चढ़कर होता है। हां, समालोचक की दृष्टि तो ऐतिहासिक सत्य पर भी समान रूप से जायेगी, वह उस सत्य की उपेक्षा सह नहीं पायेगा, अतः यथावसर चूक जाने पर टोकेगा ही। इस प्रकार हम पाते हैं कि 'वर्द्धमान' की कथा वस्तु में महाकाव्योचित घटना वैविध्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध न होने पर भी मुख्य कथा में नायक का चिन्तन एवं शान्त-शृंगार रस युक्त विस्तृत वर्णनों के कारण कथा प्रवाह को पुष्ट करने में कवि यथासंभव सफल रहे हैं। कथा वस्तु का प्रवाह क्षीण रखने का कारण यह भी है कि महावीर की कथा के लिए ऐतिहासिक कथा सूत्र जैसा और जितना चाहिए वह प्रायः नहीं के बराबर है, क्योंकि ब्रह्मचर्य के अखण्ड 1. अनूप शर्मा-वर्द्धमान, पृ॰ 261, 18.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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