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________________ 128 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य धर्म की महत्ता चारों ओर फैलाई। इस नाटक में मूल कथानक को छोड़कर व्यर्थ प्रसंग नहीं लिये गये है। इसमें केवल तीन अंक हैं और दृश्य-परिवर्तन भी यथायोग्य लिया गया है। ___ इसी अकलंक देव के प्रसिद्ध आख्यान को लेकर पं० मक्खनलाल दिल्लीवाले ने भी 'अकलंक' नामक एक नाटक लिखा है, जो भाव और भाषा की दृष्टि से साधारण है। लेकिन अभिनयात्मकता इस नाटक में विद्यमान है। महेन्द्रकुमार : ___ अर्जुनलाल सेठी ने सामाजिक, धार्मिक तथा राष्ट्रीय तत्वों से पुष्ट काल्पनिक कथा वस्तु को लेकर इस नाटक की रचना की है। इसमें परिवार व समाज में व्याप्त बुराइयों का दिग्दर्शन कराया गया है। जुआ, सट्टा, शराब, दहेज आदि कुरीतियों में फंस कर मनुष्य अपना विनाश आप करता है। लेखक का लक्ष्य इन सामाजिक व पारिवारिक बुराइयों को उद्घाटित कर लोक शिक्षा देने का है। अतः घटनाएँ प्रवाह पूर्ण न होकर उखड़ी-उखड़ी-सी लगती है। जुआरी सुमेरचंद सेठ और उसके निर्धन लेकिन तेजस्वी अनुज महेन्द्रकुमार की कथा अनेक घटनाओं और प्रवाहों में मोड़ लेती हुई आगे चलती रहती हैं। कथा में कहीं-कहीं अस्वाभाविकता का पुट भी लगता है। पात्रों की काफी भरमार की गई है। विभिन्न प्रान्त के पात्रों से उनकी बोलियों में कथोपकथन नाटक में होने से कहीं-कहीं विचित्रता व्यक्त होती है। विशृंखलित कथा होने पर भी इस नाटक का अभिनय किया जा सकता है। अंजना : ___ अंजना सुन्दरी का आख्यान जैन पुराणों में इतना प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है कि इसको मूलाधार बनाकर नाटक, काव्य, कथा, उपन्यास आदि बहुत कुछ लिखा गया है। आलोच्य काल में हिन्दी जैन नाट्य साहित्य में भी सर्वश्री सुदर्शन एवं कन्हैयालाल जी ने भी अंजना के चरित्र को महत्व देकर नाटक लिखे हैं। दोनों की कथावस्तु में अत्यन्त साम्य है और दोनों का लक्ष्य भी भारतीय आदर्शात्मक चरित्र को प्रकाशित करता है। करुण रस का परिपाक दोनों नाटकों में पाया जाता है। सुदर्शन जी का 'अंजना नाटक' साहित्यिक दृष्टिकोण से ऊँचा है, जबकि कन्हैयालाल जी का 'अंजना सुन्दरी' नाटक चरित्र चित्रण की मनोवैज्ञानिकता की दृष्टि से विश्वसनीय है। 'श्रीपाल' नाटक इनका अच्छा अभिनयात्मक नाटक है। इसमें श्रीपाल. और मैना सुन्दरी का प्रसिद्ध आख्यान लिया गया है। कथोपकथन काफी रोचक एवं जीवंत बने हैं। भाषा गद्य-पद्य मिश्रित हैं। अभिनय की दृष्टि से यह बहुत ही सफल नाटक कहा जा सकता है।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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