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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
विद्यमान है। हां, हिन्दी उपन्यासों की भांति शैलीगत टीप-टाप की मात्रा कम अभिव्यक्त होती है। हिन्दी उपन्यासों की तरह इनमें पाश्चात्य विचारधारा तथा नूतन जीवन-दर्शन का अभिगम उपलब्ध न होना स्वाभाविक है। फिर भी वे उपन्यास रोचक तथा प्रभावपूर्ण अवश्य रहे हैं। क्योंकि जीवन के साथ नाना जगत के व्यापक सम्बन्धों की समीक्षा जैन उपन्यासों में मार्मिक रूप से की गई है। कथानक इतना रोचक है कि पाठक वास्तविक संसार के असंतोष और हाहाकार को भूलकर कल्पित संसार में ही विचरण नहीं करता, बल्कि अपने जीवन के साथ नाना प्रकार की क्रीड़ाएं करने लगता है। ये क्रीड़ाएं अनुभूतियों के भेद से कई प्रकार की होती है। आशा, आकांक्षा, प्रेम, घृणा, करुणा, नैराश्य आदि का जितना चित्रण जैन उपन्यासों ने किया है, उतना अन्यत्र शायद ही मिल सकेगा"।
आलोच्य काल में उपलब्ध उपन्यासों में मनोवती, रत्नेन्द, सुशीला, मुक्तिदूत और चतुराबाई प्रमुख रूप से हैं। इनमें औपन्यासिक दृष्टिकोणों से श्री वीरेन्द्र जैन का 'मुक्ति दूत' उपन्यास सर्वाधिक सफल एवं उत्कृष्ट कहा जायेगा। यहाँ इन सभी पर केवल परिचयात्मक दृष्टि से विचार किया जायेगा तथा आगे के अध्याय में इनकी वस्तु विवेचना और अन्य पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की जायेगी। मनोवती : -
यह उपन्यास न केवल हिन्दी जैन उपन्यास साहित्य की प्रारंभिक कृति है, बल्कि हिन्दी साहित्य में प्रारंभिक उपन्यासों का जब सृजन हुआ, उस समय की रचना है। अतः औपन्यासिक कला का प्रायः अभाव रहना बहुत स्वाभाविक है। इस उपन्यास के लेखक हैं प्रसिद्ध जैन साहित्यकार आरा निवासी जैनेन्द्र किशोर।" आज आधुनिक वातावरण के अनुरूप नयी-नयी शैलियों और स्वरूपों में उपन्यासों की रचना की आती है। अत: औपन्यासिक कला का स्तर प्रारंभिक उपन्यासों की अपेक्षा अधिक उन्नत और सुविकसित होगा ही। 'मनोवती' उपन्यास प्रारंभिक काल की रचना होने से सुविकसित औपन्यासिक कला से रहित है।
__मनोवती नायिका प्रधान उपन्यास है, जिसमें श्रेष्ठि कन्या मनोवती के उदात्त चरित्र का यहां पूर्ण विकास हुआ है। मनोवती अपने धैर्य, पति-भक्ति
और धार्मिक दृढ़ता के कारण अनेक कष्टों को सहने के उपरान्त कैसे पति व 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्यक परिशीलन-भाग 2, पृ. 55. 2. आधुनिक हिन्दी जैन नाटक का प्रारंभ भी इन्होंने किया था। अभी थोड़े वर्ष पूर्व
आपका निधन हुआ।