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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
हिन्दी जैन साहित्य को दोहा - चौपाई, छंद में रचित एक महाकाव्य प्राप्त हुआ। कवि ने इसे सात काण्डों में विभक्त किया है।
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'वीरायण' महाकाव्य में कवि मूलदास जी ने भगवान महावीर के जीवन की प्रमुख घटनाओं के साथ-साथ प्रासंगिक घटनाओं को भी आकलित कर लिया है। आधिकारिक कथा के अन्तर्गत प्रभु महावीर के गर्भ स्थापन से जन्म तक की घटना, बाल्यकाल एवं विवाह - प्रसंग, गृहस्थ जीवन तक है, तो गृह-त्याग के अनन्तर साढ़े बारह वर्ष तक भिन्न-भिन्न स्थल पर विचरण करना, तपस्या तथा चिन्तन-मनन के पश्चात् 'केवल ज्ञान' प्राप्त करने की घटना प्रमुख है। तत्पश्चात् धर्म प्रचारक एवं तीर्थंकर का रूप विशेष उभरता है। अवान्तर कथाओं में चण्ड कौशिक, चन्दन - बाला, गोशालक कथा विशेष महत्त्वपूर्ण है, जो साथ चलकर मुख्य कथा के प्रवाह को पुष्ट करती है। कथा वस्तु को गतिशील बनाये रखने के साथ विविध वस्तु-वर्णन, प्रकृति चित्रण, पात्रों के मार्मिक चरित्र - निरूपण, मनोवैज्ञानिक सूझबूझ - पूर्ण घटनाओं के विश्लेषण, शान्त व श्रृंगार रस के नियोजन द्वारा काव्य को रोचक तथा सफल बनाया गया है।
'वीरायण' में कवि ने मुख्य कथा के प्रत्येक प्रसंग को बड़ी ही मार्मिकता से उभारा है। इसीलिए उसका कलेवर भी वृहत हो गया है। भगवान महावीर के पूर्व भवों में से त्रिपुष्ट वासुदेव, पुष्पमित्र चक्रवर्ती एवं नन्दन राजकुमार के जीवन - भवों का विस्तृत व फड़कता वर्णन किया है, साथ ही गर्भस्थ बालक की हिलने की क्रिया के बन्द होने पर माता त्रिशला का करुण क्रन्दन का कवि ने भावपूर्ण वर्णन किया है। ऐसे बहुत से मार्मिक प्रसंगों का रसास्वादन 'वीरायण' महाकाव्य में कराया गया है, जिनकी विस्तृत चर्चा अगले अध्याय में की जायेगी।
इस महाकाव्य में कवि ने स्पष्टतः श्वेताम्बर मान्यतानुसार प्रभु के ब्याह का वर्णन बड़ी ही अद्भुत और आलंकारिक शैली में किया है। विवाह महोत्सव एवं नववधू की दिनचर्या का भी सजीव चित्रण किया गया है। कवि मूलदास जी ने सुन्दर वर्णनों शान्त, श्रृंगार को वात्सल्य व अद्भुत रसों की भावभूमि में जीवन व धर्म की दार्शनिकता की भावप्रवण अभिव्यक्ति इस महाकाव्य में की है। उनकी भाषा-शैली महाकवि तुलसीदास जी की भाषा के माधुर्य, उदात्तता, गहराई व परिपक्वता को छू सकने में असमर्थ होने पर भी ब्रज-अवधी मिश्रित खड़ी बोली के इस महाकाव्य में भाषा की मधुरता एवं स्निग्धता अवश्य पाठक को सराबोर कर सकती है। वैसे कवि का उद्देश्य तुलसीदास जी जैसे महाकवि