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श्रीलंका की कला में बौद्ध धर्म का
वैश्विक अवदान
राजकुमार गुप्त
भारतीय अनुस्रुति के अनुसार लंका में सर्वप्रथम भारतीय संस्कृति का सन्देश अयोध्या के राजा श्री रामचन्द्र जी ले गये थे जब उन्होंने रावण से सीता को मुक्त करने के लिये लंका पर आक्रमण किया था। सिंहल ग्रन्थ दीपवंस व महावंश में वर्णित है कि लंकाद्वीप की स्थापना एक भारतीय उपनिवेश के रूप में लाळ नरेश (काठियावाड़) सिंहबाहु के विद्रोही पुत्र विजय ने की (जिसे भगवान बुद्ध का आशीर्वाद प्राप्त था)। उसे अपने उच्छृङ्खल कार्यकलाप के कारण पिता द्वारा देश निकाला दे दिया गया था। वह अपने कुछ साथियों के साथ लंकाद्वीप पहुंच गया। उसने अपने पिता के नाम पर इसे सिंहलद्वीप घोषित किया।'
अशोक के अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि उसने सर्वत्र अपने साम्राज्य में, प्रत्यन्त प्रदेशों में तथा सुदूर पश्चिमी विदेश में धर्म-विजय का प्रयत्न किया और वहाँ पर दूतों को धर्म-प्रचार हेतु भेजा। अनेक इतिहासकारों ने यह स्वीकार किया है कि अशोक की यह धर्म-विजय सद्धर्म (बौद्ध धर्म) का ही प्रचार था और उसके संरक्षण और प्रयास के कारण ही भारत भूमि में जन्मा एक धार्मिक सम्प्रदाय विश्वजनीन धर्म में परिणत हो गया। अशोक की प्रेरणा से मोग्गलिपुत्र तिष्य स्थविर ने तृतीय बौद्ध संगीति के बाद प्रत्यन्त प्रदेशों में बुद्ध - शासन की उन्नति और धर्म प्रचार के लिए भिक्षुओं को भेजा। मोग्गलिपुत्र तिष्य स्थविर ने संघ के स्थविरों से कहा कि वे चार-चार भिक्षुओं के साथ स्वयं को पाँचवां मानकर (पाँच-पाँच की मण्डली में) प्रत्यन्त देशों