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श्रमण-संस्कृति अभूतपूर्व थी। भिक्षुणियों ने निःसंदेह अपने-आप को बड़ी सफलतापूर्वक व्यवस्थित कर रखा था और शायद इस प्रस्ताव के बाद भी वे ऐसे ही कार्यरत रहीं, लेकिन अब औपचारिक तौर पर भिक्षुओं के नियंत्रण (तथा संरक्षण) में। ऐसे समझौते ने उन्हें बेचैन तो शायद अवश्य कर दिया होगा, लेकिन यह ऐसा समझौता था जिसके द्वारा भिक्षुओं को न केवल राहत मिली होगी बल्कि स्वतंत्र कल्प महिलाओं के असामान्य समूह को भी जितना संभव हो सकता था उतना उचित ठहराया गया होगा। लेकिन, इस कहानी में, विनय के सम्पादकों को कई और समस्याओं का समाधान भी करना पड़ा। कहानी में, महाप्रजापति गौतमी महिलाओं के नेतृत्व का कार्य करती है, जो बुद्ध के भिक्षुओं के नेतृत्व के समानान्तर चलती है। प्रारम्भ में, बुद्ध द्वारा उनकी मांग अस्वीकार कर दिये जाने के बावजूद महाप्रजापति गौतमी व उनकी शिष्याएं केश कटाये, काषाय वस्त्र पहने तथा बुद्ध के धर्म व संघ का अनुसरण करती हुई दिखाई गई हैं।
बौद्ध धर्म ने महिलाओं को परिवार, विवाह और प्रसूति जैसी संस्थाओं से न केवल मुक्ति पाने का बल्कि उन्हें खुद को संयोजित करने का मौका भी दिया। . .
संदर्भ
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