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भारतीय संस्कृति पर बौद्ध प्रतीकों का प्रभाव
ऐसे प्रतीक मिलते हैं जो कालान्तर में जनजीवन, लोक परम्परा एवं संस्कृति पर प्रभाव डालते नजर आते हैं। इन प्रतीकों को शिक्षा के क्षेत्र से लेकर धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों तक विस्तार मिला ।
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सिंह धर्म का प्रतीक है । इस लिये बुद्ध की मूर्ति स्थाणुक या आसन जिस किसी मुद्रा में क्यों न दिखायी जाये, मूर्ति के पीठ अथवा आसन के नीचे सिंह बना रहता। ध्यातव्य है कि विजय व धर्म के प्रतीक को अशोक के सारनाथ स्तम्भ पर चर्तुसिंहों द्वारा दर्शाया गया । यही विजय का प्रतीक भारत का राष्ट्रीय 'सारनाथ का अशोक चक्र' बना जो धर्म चक्र है अर्थात् रक्षा शक्ति है।
वैष्णव धर्मावलम्बी विष्णु का चक्र एवं बौद्ध धर्म का चक्र दोनों में पर्याप्त अन्तर है। विष्णु का चक्र एक आयुध है जो युद्ध में प्रयोग किया जाता है, जब कि बौद्ध चक्र ज्ञान तथा इच्छा शक्ति का प्रतीक है । अत: चक्र की भांति बौद्ध उपदेश पूरे विश्व में, चहुं दिशाओं में घूमते रहे। इस प्रकार धर्मधारण करने वाली शक्ति है।
धर्म के द्वारा साहित्य तथा कला के द्वारा संगीत तथा श्रृंगार के द्वारा सामाजिक एकता का विकास होता है । साहित्य एवं कला के माध्यम से एक समाज दूसरे समाज को समझने व पहचानने लगता है।
भारतीय जन जीवन के प्रति बौद्ध धर्म का महानतम एवं सर्वोत्कृष्ट योगदान स्थापत्य एवं शिल्प के क्षेत्र में रहा है। सांची, भरहुत, अमरावती के स्तूपों, अशोक के प्रस्तर स्तम्भों तथा कन्हेरी (बम्बई), कार्ले (पूणे) और नासिक के गुहा, चैत्य एवं विहार बौद्ध कला के सर्वोत्तम निदर्शन हैं । सुन्दर तोरण द्वारों एवं वेदिका से युक्त सांची का महास्तूप अपनी वास्तुकला एवं शिल्प सौष्ठव दोनों के लिये विश्वविख्यात है । इस प्रकार भारतीय कला केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में विख्यात रही ।
इस सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने देशों को सभ्य बनाने और विभिन्न देशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार करने में भारत के अलगत्व को समाप्त किया और विदेशों के साथ भारत के घनिष्ठ सम्बन्धों की स्थापना की दिशा में सेतु का काम किया। अशोक के शासन काल से ही बौद्ध