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बौद्ध परम्परा में प्रतीकवाद
चन्दन विश्वकर्मा
ई० पू० छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गंगा के मैदानों में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ। इनमें से बौद्ध धर्म, जिसका उदय भगवान बुद्ध के द्वारा हुआ था यह एक धार्मिक सुधार के परम शक्तिशाली आन्दोलन के रूप में उभरा। वस्तुतः बौद्ध धर्म के उदय ने भारत के धर्मों के इतिहास में क्रान्ति का सूत्रपात किया। बुद्ध बड़े व्यवहारवादी सुधारक थे, उन्होंने अपने समय की वास्तविकताओं को खुली आँखों से देखा । वे उन निरर्थक वाद-विवादों में नहीं उलझे, जो उनके समय में आत्मा एवं परमात्मा के बारे में जोरों से चल रहे थे उन्होंने अपने को सांसारिक समस्याओं में लगाया। उन्होंने चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद आदि के माध्यम से सामान्य जनता में अपने मत का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। बौद्ध धर्म की अतिसय उदारता से बौद्ध धर्म को सम्पूर्ण विश्व में फैलाया।
बुद्ध ने स्वयं ही कहा है कि निर्वाण के लिए प्रत्येक को प्रयास करना होगा, अपना दीपक स्वयं बनना होगा। बुद्ध ने अपने जीवन काल में ही अपने अनुयायियों के मध्य अन्यतम् प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी और बुद्धत्व को देवत्व माना जाने लगा, अशोक के द्वारा बौद्ध धर्म के राजाश्रय प्रदान कर देने से बौद्ध धर्म चर्मोत्कर्ष पर पहुंच गया। __भारत और भारत के बाहर विभिन्न देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार उसकी सरलता, सहजता और मानवीय गुणों के कारण हुआ। इसकी मानवतावादी अभिव्यक्तियों के कारण ही विभिन्न वर्गों के लोगों ने इसे अपनाया और इसके