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44 भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
सत्यनाम
किसी भी देश की संस्कृति उसके विभिन्न युगों के आचारों की परम्परा से उत्पन्न एक भूषण युक्त परिष्कृत स्थिति की द्योतक होती है। विश्व में प्राचीन एवं अर्वाचीन अनेक संस्कृतियां हैं। किन्तु उन सब में भारतीय संस्कृति का स्थान अनुपम एवं सर्वोच्च है। भारतीय संस्कृति के अनूठे महत्व को पाश्चात्य मनीषियों ने एक स्वर से स्वीकार किया है।
भारतीय संस्कृति का प्रभाव प्रारम्भ से आज तक अटूट रहा है। विश्व की विभिन्न संस्कृतियां अपने-अपने समय में नितान्त परिपुष्ट दिखती हुई भी क्रमशः काल के प्रवाह में जर्जर होकर लुप्त ही हो गयीं। आज उनके ध्वंसावशेषों मात्र से उन संस्कृतियों का परिज्ञान हो पाता है। अन्य कुछ प्राचीन संस्कृतियां विभिन्न परिवर्तनों में पड़कर इतनी बदल गयीं कि उन्हें मूलरूप में पहचान पाना ही सम्भव नहीं रहा, किन्तु भारतीय संस्कृति दीर्घजीवी सिद्ध हुई। विभिन्न युगों में अनेक परिवर्तनों के हो जाने पर भी इसने अपने मौलिक स्वरूप को भी नहीं त्यागा और आज तक क्रियाशील भी बनी हुई है। अनेक सहस्राब्दियां व्यतीत हो चलीं किन्तु सिन्धु घाटी की सभ्यता से भी पूर्व प्रारम्भ हुई भारत भूमि की इस संस्कृति की परम्परा आज भी अक्षुण्ण ही बनी हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रबल प्रमाण हैं। भाषा के क्षेत्र में संस्कृत आज भी विद्य समाज में उसी प्रकार लिखी, पढ़ी और बोली जाती हैं जैसे पाणिनि के समय में। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व धार्मिक क्षेत्रों में राम और कृष्ण, ब्रह्मा और शिव सहस्रों वर्ष पूर्व की भांति आज भी पूज्य और प्रातः स्मरणीय हैं। सम्पूर्ण भारत खण्ड के विभिन्न प्रदेशों को सिंचित करके भूमि को शस्य श्यामला बना देने वाली