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भारतीय संस्कृति पर बौद्ध एवं जैन परम्परा का प्रभाव
निर्मला शुक्ला
जैन धर्म एवं बौद्ध का अभ्युदय और विकास भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण देन है। इनके द्वारा विहित सिद्धान्त, आदर्श और परम्पराएं आज भी भारतीय संस्कृति की अमूल्य विरासत हैं। बौद्ध एवं जैन दोनों ही धर्म निवृत्तिमार्गी हैं जिसमें सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति की अपेक्षा त्याग को महत्व दिया गया है। यद्यपि उपनिषदों में इस प्रवृत्ति का प्राधान्य है । फिर भी भारतीय संस्कृति में इसकी विशद् अभिव्यक्ति की दृष्टि से इन दोनों परम्पराओं का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा। जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में स्वतन्त्र एवं तार्किक चिन्तन को महत्व देकर बौद्धिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया गया। बुद्ध ने अपने धर्म के लिए एहिपैसिक शब्द प्रयुक्त किया है जिसका अर्थ है - आओ और देखो अर्थात् किसी बात को इसलिए स्वीकार नहीं करना चाहिये कि परम्परा में ऐसा कहा गया है, बल्कि स्वयं विवेक से सत्य की परख करके उसे स्वीकार करना भारतीय संस्कृति में इन दोनों का मुख्य योगदान है। जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में नैतिक आचरण और सिद्धान्तों पर विशेष बल दिया गया है ।' जैन धर्म के सम्यक् चरित्र एवं पंचमहाव्रत की अवधारणा और बौद्ध धर्म के दस शील इसी से सम्बन्धित हैं ।
प्राचीन काल से मथुरा भारतीय संस्कृति का प्रभावशाली केन्द्र रहा है । वृहल्कल्पभाष्य की अनुभूति के अनुसार इस नगर के 96 ग्रामों में लोग अपने घरों के द्वारों में ऊपर तथा चौराहों पर जिन मूर्तियों की स्थापना करते थे । सिन्धु