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भारतीय बौद्ध शिक्षा केन्द्रः विहार-आयाम
257 बुद्ध ने यहीं पर उनका धर्म शिक्षा में परिवर्तन किया था। यहाँ पर उपालि को भी भिक्ष के रूप में दीक्षित-शिक्षित किया गया था। इस नगर में बुद्ध की शैक्षिक क्रियाशीलता उल्लेखनीय है। महावीर ने यहाँ चौदह चातुर्मास व्यतीत किये थे। यह बीसवें तीर्थक का जन्म स्थान था। यहाँ पर बुद्ध ने भी भिक्षुओं
को बुलाया और बौद्ध संघ शिक्षा के लिए कल्याण की दशाओं के कई वर्ग निर्धारित किये। मगध नरेश अजात शत्रु ने राजगृह के चारों ओर धातु चैत्य बनवाये और 18 महाविहारों का जीर्णोद्धार कराया। सारनाथ
"शारंगनाथ" (सारनाथ) स्तम्भ-लेख में 'वाराणसी जिले में स्थित प्राचीन स्थल' सारनाथ का वर्णन है, जो वाराणसी से लगभग सात मील दूरी पर स्थित है। यहाँ पर बौद्ध अवशेषों का एक विशाल संग्रहालय है। सारनाथ शिलालेख धमेख स्तूप के उत्तर से तथा गुप्तकालीन प्राचीन विहारों के अवशेषों पर पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए ऊँचे टीले के दक्षिण से खोद कर निकाला गया था। इसका प्राचीन नाम इसिपत्तन मिगदाय (ऋषिपत्तन मृगदाय) है, जहाँ पर बुद्ध धर्मचक्र - प्रवर्तन किया था। कनिंथम ने इसे उत्तर में विशाल धमेख स्तूप से दक्षिण में चौकुंडी टीले तक लगभग आधी मील तक फैले हुए सुरम्य जंगलों से आच्छादित क्षेत्र से समीकृत किया है। दूसरी शताब्दी ई०पू० में इतिपतन में बौद्ध भिक्षुओं का एक विशाल केन्द्र था। वैशाली
विशाल नगर वैशाली लिच्छिवियों की राजधानी थी, जो छठवीं शताब्दी ई० पू० में पूर्वी भारत के एक महान एवं शक्तिशाली जन थे। भारतीय इतिहास में यह लिच्छवी राजाओं की राजधानी तथा महान एवं शक्तिशाली वाज्जिसंघ के मुख्यावास के रूप में विश्रुत हैं। कनिंथम ने इस विशाल नगरी तिरहुत को मुजफ्फपुर जिले में स्थित वसाढ़ नामक वर्तमान गांव में समीकृत किया है। पंचवी शताब्दी ई० में चीनी तीर्थयात्री फाह्यान वैशाली आया था।
बुद्ध के निर्वाण प्राप्त कर लेने के पश्चात् वैशाली के प्रति सम्पूर्ण बौद्ध संघों का ध्यान आकर्षित हुआ था। सम्पूर्ण संघों के प्रतिनिधि यहाँ पर मिले थे