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बौद्ध साहित्य में चिकित्सा
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भी नहीं पच रहा है । ' भगवान बुद्ध एकान्त चिन्तन करते हैं और भिक्षुओं को औषधि की अनुमति के संदर्भ में विचार करते हुए उन्हें निर्देश देते हैं(क) पञ्च औषधि विधान
गहन चिन्तन मनन उपरान्त तथागत ने शीतकालीन व्याधियों से पीड़ित बुद्ध भिक्षुओं के लिए घृत, मक्खन, तेल, मधु, एवं खाड़ को पूर्वाह्न में सेवन की अनुमति दिया ।'
(ख) चर्बी युक्त औषधि विधान
तथागत ने भिक्षु भिक्षुणियों के रुग्णोपचार क्रम में मछली की चर्बी, सूअर एवं गधे की चर्बी, सोंस की चर्बी सेवन की अनुमति प्रदान किया, साथ ही सेवन का समय भी नियत किया एवं कुसमय सेवन को दोषयुक्त बताया। (ग) कषाय एवं मूल औषधि विधान
बौद्ध साहित्य तथागत द्वारा जड़ी बूटियों के व्यवहार का अध्ययन करता है जहाँ हल्दी, अदरख, नागर मोथा, सदृश औषधियों के सेवन का विधान बताया गया है। इन जड़ी-बूटियों को खरल एवं बट्टे से कूट कर चूर्ण बना के औषधि रूप में तैयार करने का वर्णन प्राप्त होता है। भगवान बुद्ध ने अपने भिक्षु भिक्षुणियों के अस्वस्थ होने पर नीम का कषाय, परवल का कषाय एवं कड़वे फल का रस औषधि रूप में प्रयोग करने का निर्देश दिया। (घ) औषधि निर्माण उपकरण
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बौद्ध साहित्य में सील्ह, लोढ़ा, खरल एवं बट्टे, ओखली एवं मूसल तथा चलनी को औषधि निर्माण के उपकरण रूप में वर्णित किया। इनके माध्यम से चूर्ण युक्त औषधियां निर्मित की जाती थीं । भगवान बुद्ध ने काली मिर्च, हरी मिर्च, आंवला, को कूट कर चूर्ण रूप में भिक्षु भिक्षुणियों को दैनिक व्यवहार में उपयोग का विधान बताया ।
(च) अन्य औषधि विधान
भगवान बुद्ध ने भिक्षु भिक्षुणियों के मध्य स्वास्थोपचार के अनेक उपदेश दिये । यथा - नेत्र रोग से ग्रसित भिक्षुओं को अन्जनि प्रयोग की अनुमति प्रदान किया