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पाठक जी ने शायद उसी समय अपने मन में यह निर्णय ले लिया रहा होगा कि मैं प्रेम सागर जी को गोरखपुर विश्वविद्यालय में नियुक्त करूँगा। फरवरी 1972 को प्रारम्भिक तिथियों में एक दिन मुझे ज्ञात हुआ कि श्री प्रेम सागर चतुर्वेदी जी की नियुक्ति गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रवक्ता पद पर हो गई है तथा उन्होंने 04 फरवरी को ही वहाँ कार्यभार भी संभाल लिया है। मैं बहुत पहले से ही यह समझने लगा था कि श्री चतुर्वेदी जी महाविद्यालय में अधिक समय तक शायद ही सकें उन्हें कहीं न कहीं इससे उच्च पद अवश्य मिल सकता है।
प्रो० चतुर्वेदी जी को शैक्षणिक प्रकर्ष विशेष रूप से शोध एवं लेखन के क्षेत्र में प्रो० पाठक जी के सानिध्य में आने के फलस्वरूप मिला। उन्होंने प्रो० पाठक जी के योग्य पर्यवेक्षणत्व में 'सम आस्पेक्टस् ऑफ टेक्नोलॉजी इन द वैदिक लिटरेचर' पर एक मानक शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया, जो बाद में बुक्स एण्ड बुक्स, नई दिल्ली से 1993 ई० में प्रकाशित हुआ। उनके कई शोध - लेख अन्तर्राष्ट्रिय एवं राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। वे अपने गुरुश्री प्रो० पाठक जी की ही तरह सतत चिन्तन, लेखन एवं अध्ययन में लीन रहते हैं। उनके वैदुष्य मण्डित व्यक्तित्व का पूरा लाभ बहुतों को तब और प्राप्त हो सका, जब वे यू०जी०सी० एकेडेमिक स्टॉफ कॉलेज, गोरखपुर विश्वविद्यालय के निदेशक पद पर प्रतिष्ठित किए गए। सम्प्रति वे प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष हैं, यह गौरव की बात है।
प्रो० चतुर्वेदी जी का सौम्य, स्वभाव एवं मृदु हास, सहज, सरल एवं सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार मेरे स्मरण-पट पर सदा स्वस्थ एवं जीवन्त रहता है। मैं उनके स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन को सदा मङ्गल कामना करता हूँ।
हरिनारायण दुबे