________________
23 पर्यावरणीय उपादान एवं गौतम बुद्ध (वर्तमान से सम्बद्धता के विशेष संदर्भ में)
ओम जी उपाध्याय
वस्तुतः पर्यावरण एक आधुनिक अवधारणा है जिसका तात्पर्य उस अधिवासीय वातावरण से है, जहाँ पर जैविक घटक व अजैविक घटक सतत् अंतराकर्षित होते हैं। मनुष्य ने, विशेषतः द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त पारिस्थितिक नियमों के विपरीत पर्यावरणीय उपादानों से पदार्थ व ऊर्जा का अत्यधिक दोहन किया, जिसके फलस्वरूप मनुष्य की आयु, कार्यिक क्षमता एवं खाद्य उपलब्धता में तो वृद्धि हुई, किन्तु अन्य जीवों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा तथा पारिस्थितिक असंतुलन की समस्या उत्पन्न हो गई। तापमान-वृद्धि, ओजोन छिद्र, अम्लीय वर्षा व ग्रीन हाउस प्रभाव आदि के कारण सम्पूर्ण जीवमंडलीय पर्यावरण तंत्र तेजी से असंतुलित हो रहा है। अनेक जीवों का विनाश हो रहा है तथा अनेक विनाश के कगार पर खड़े हैं। ___ तात्कालिक लाभ के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई ने पर्यावरण-चक्र को अस्त-व्यस्त कर दिया है, जिसका भयावह परिणाम सूखा, अकाल, अतिवृष्टि, बाढ़, ओलावृष्टि, वैश्विक तापन, दूषित वायु व मृदा-क्षरण के रूप में सामने आया है। वनों के विनाश के कारण तीव्र गति से जैविक विनाश भी हो रहे है। पहाड़ों पर निरंतर कटाई का परिणाम भू-स्खलन, चट्टान खिसकने एवं बादल फटने जैसी घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है।
अनियंत्रित औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप क्लोरोफ्लोरो कार्बन, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन व मिथाईल ब्रोमाईड जैसे तत्त्वों के कारण सूर्य की पराबैंगनी