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बुद्धायन में अभिव्यक्त बौद्ध धर्म एवं
उसकी प्रासंगिकता
मृत्युंजय कुमार सिंह
भोजपुरिया लोग स्वभावतः युद्धप्रिय,' महान चिंतक या दार्शनिक होते हैं। इनका साहित्य भी इसी परंपरा से भरा पड़ा है। भोजपुरी के आदि कवि कबीरदास ने जहाँ अपनी रचनाओं से समाज में फैली वर्णव्यवस्था, जात पात, कुरीतियों आदि पर प्रहार कर सामाजिक चेतना फैलाया वहीं उसी परंपरा को भोजपुरी के संत कवि धरनीदास ने आगे बढ़ाया। धरनीदास ने कबीर के समान ही बाह्याडम्बर, मूर्तिपूजन, बहुदेववाद, बकवाद, वर्णाश्रम व्यवस्था आदि का प्रखर विरोध हुए प्रेम, दया, परोपकार आदि की प्रतिष्ठा की।
कबीरा पुनी धरनी भयो, शाहजहाँ के राज' भोजपुरी भाषा एवं भोजपुरिया समाज के महान चिंतक महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने जहाँ विश्व को बौद्ध संस्कृति के लुप्त हो रहे दर्शन तथा ग्रंथों की खोज की वहीं अपनी प्रगतिशील एवं सामाजिक रचनाओं से पूरे राष्ट्र का मार्ग दर्शन किया। उन्होंने अपनी मातृभाषा भोजपुरी में सात नाटकों की रचना की तथा जीवन पर्यन्त अपनी मातृभाषा की उन्नति के लिए प्रयासरत रहे।
बहुआयामी प्रतिभा के धनी भोजपुरी के शेक्सपीयर, लोककवि भिखारी ठाकुर ने जहाँ एक ओर अपनी रचनाओं के माध्यम से गरीब, उपेक्षित और अशिक्षित जनता में नवजागरण एवं पुनर्जागरण का कार्य किया वहीं दूसरी
ओर भोजपुरिया क्षेत्र से नवजवानों का शहरों की ओर पैसे के लिए पलायन के कष्ट को भी उजागर किया, जो आज भी प्रासांगिक है।