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श्रमण-संस्कृति
गीतों का संग्रह 'थेरीगाथा' के नाम से प्रसिद्ध है। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार में इनका प्रमुख योगदान था। धम्मादिन्ना, सुबका, पटाचारा शिक्षिकायें थीं। विनयपिटक (चतुर्थ भाग) में चुल्लनन्दा तीन स्थलों पर महान शिक्षिका कही गई है। भद्राकुडकेशा, शुभा, अमोपमा, सुमेधा, राजकुमारी सुमना आदि अन्य भिक्षुणियां थीं जो महात्मा बुद्ध के साथ धार्मिक परिचर्चा में भाग लेती थी।
जातक साहित्य से अनेक विदुषी नारियों का उल्लेख प्राप्त होता है। थेरी भिगारमाता, अमरा, उब्बिरी आदि ऐसी नारियां थीं जो सांसारिक भोग-विलासों से दूर रहकर साधना अध्ययन एवं मनन का जीवन व्यतीत करती थीं। क्षेमा के प्रकाण्ड दार्शनिक ज्ञान तथा सूक्ष्म विवेचन ने राजा पसेनदि को आश्चर्यचकित कर दिया। संयुक्त निकाय में सुभद्रा नामक भिक्षुणी का उल्लेख है जो व्याख्यान में दक्ष थी इस प्रकार बौद्धयुगीन भिक्षुणी संघ से नारी शिक्षा को प्रश्रय मिला। अजातशत्रु की मां को वैदेही इसीलिए कहा जाता था क्योंकि वह विदुषी थी। इसी प्रकार नन्दुत्तरा ने शिल्प एवं विज्ञान की शिक्षा ली थी। कुमारी के लिए पण्डिता, वक्ता मेधाविनी जैसे विशेषणों के प्रयोग से तत्कालीन नारी शिक्षा का स्पष्ट अनुमान किया जा सकता है। यत्र तत्र गुरुकुलों में शिष्य-शिष्याओं के उल्लेख मिलते हैं जिनसे यह कहा जा सकता है कि बौद्ध युग में वैदिक कालीन शिक्षा पद्धति के अवशेष भी अपवाद रूप में विद्यमान थे।
बौद्ध युग में महिलाओं की दशा के पड़ताल के क्रम में यह आवश्यक सा हो जाता है कि महिलाओं के बारे में बुद्ध के विचारों का परीक्षण किया जाय। बौद्ध ग्रन्थों के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि गौतम बुद्ध का महिलाओं के प्रति बहुत ही सकारात्मक और क्रांतिकारी रुख था।
बुद्ध ने नारी को ज्ञानी, मातृत्वशील, सृजनात्मक, भद्र व सहिष्णु के रूप में स्वीकार किया। जातक ग्रंथों से महिलाओं के प्रति बुद्ध के विचारों का निदर्शन होता है जिसमें कहा गया है कि 'स्त्रियां विलक्षण एवं पण्डिता होती हैं, सभी जगह पुरुष ही पण्डित नहीं होते, सूक्ष्म विस्तार करने वाली स्त्रियां भी पण्डिता होती हैं। व्यक्तिगत रूप से बुद्ध ने संघ के भीतर महिलाओं को पुरुषों