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श्रमण-संस्कृति में वैदिक धर्म की प्रतिक्रिया में बौद्ध और जैन धर्म उदित हुए, तो बुद्ध और महावीर को भी अवतारों में परिगणित कर लिया गया। सहनशीलता के इसी गुण के कारण भारत में सारे धार्मिक विश्वास, सारी भिन्न-भिन्न पूजा विधियां विभिन्न रहन-सहन, खानपान, आदि सभी एक साथ स्वीकृत रहते आये हैं। भारतीय संस्कृति के इसी वैशिष्ट्य के कारण भारत में साम्प्रदायिक युद्धों एवं रक्तपात का कोई इतिहास उपलब्ध नहीं होता।
बौद्ध धर्म मूलतः हिन्दू धर्म का ही एक सुधार वादी दृष्टिकोण था। बौद्ध धर्म ने जिन सिद्धान्तों को अपनाया वे वस्तुतः नये नहीं थे। वरन् सारे ही उपनिषदों ने उनका प्रतिपादन किया था। किन्तु भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता पर बौद्ध धर्म ने अपनी विलक्षण एवं अमिट छाप छोड़ी है। भारत के धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, दार्शनिक कला सम्बन्धी सभी क्षेत्र बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित हुए हैं। जिसका विवरण निम्नलिखित है -
बौद्ध धर्म पूर्ववर्ती जटिल हिन्दू धर्म की अपेक्षा अत्यन्त सरल एवं कर्मकाण्ड रहित था। हिन्दू धर्म में प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक रूप देवताओं की याज्ञिक उपासना प्रचलित थी अथवा निर्गुण ब्रह्म का अध्यात्मवाद था। यह सारा धर्म सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए समझ पाना आसान नहीं था। बुद्ध धर्म ने इस कठिनता को दूर कर दिया। बौद्ध धर्म में ही सर्व प्रथम व्यक्तित्व को भी प्रधानता मिली। बौद्ध धर्म की सरलता, शिष्ट नैतिक नियम, सामूहिक प्रार्थना तथा पूजन, उपमा और दृष्टान्तों से समन्वित उपदेश का सर्वप्रिय ढंग इन सबने मिलकर भारतीय जीवन पद्धति पर ही बहुत प्रभाव डाला।
बौद्ध धर्म में सत्य, सदाचार, काम, क्रोधादि छः विकारों का त्याग, अपरिग्रह, जनसेवा आदि उच्च नैतिक नियमों के पालन में जन मानस की नैतिकता का स्तर भी ऊंचा किया। इससे पूर्व में सारे सिद्धान्त मात्र थे, किन्तु बुद्ध एवं उनके भिक्षुओं ने इन समस्त गुणों को अपनी जीवन पद्धति में साक्षात प्रयोग करके भी दिखा दिया जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा। आत्मा की पवित्रता शुद्ध कर्म से ही सम्भव है। अतः अष्टांगिक मार्ग पर चलकर ही दुःख से निवृत्ति सम्भव है। बुद्ध के इन उपदेशों ने व्यक्तिगत जीवन के निर्वाह का मार्ग भी उत्कृष्ट किया, जिससे समाज में उच्च नैतिकता स्थापित हुई।