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श्रमण-संस्कृति इस प्रकार स्पष्ट होता है कि बौद्ध धर्म में स्तूप निर्माण की प्रक्रिया में सारनाथ के स्तूपों का विशिष्ट महत्व है। सारनाथ का इतिहास बुद्ध के सारनाथ आगमन से ही आरम्भ होता है। छठी शताब्दी ई० पू० में सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद सारनाथ के मृगदाव में पांच भिक्षुओं को उपदेश दिया था। इस पवित्र भूमि पर लगभग सभी धर्मों के विकास का प्रमाण कलाकृतियों से लगाया जाता है। यह स्थल धर्म के साथ-साथ कला का केन्द्र भी बन गया तथा इसका क्रम पूर्व मध्यकाल तक चलता रहा। बौद्ध धर्म में सारनाथ का विशेष महत्व है। आज सारनाथ बौद्धों के तीर्थ एवं पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। इसके साथ ही सारनाथ भारतीय धर्म, कला एवं संस्कृति के अध्येताओं के आकर्षण का केन्द्र भी है। सारनाथ में भगवान बुद्ध के धर्मचक्र परिवर्तन करने के कारण इन स्तूपों का महत्व बौद्ध धर्म के साथ ही भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
संदर्भ 1. वाशुदेव शरण अग्रवाल, भारतीय कला, पृ० 136 2. ओम प्रकाश पाण्डेय, सारनाथ की कला, पृ० 33 3. फाहियान, पृ० 75 4. उ० प्र० (काशी अंक परिशिष्टांक) अंक 1 वर्ष 12 (ल० 1983) 5. बी० भट्टाचार्या, सारनाथ का इतिहास पृ० 68 6. जे० डंकन, बनारस गजेटियर, पृ० 350 7. दयाराम साहनी, सारनाथ केटलाग, पृ० 10 8. दयाराम साहनी, ए गाइड टू बुद्धिस्ट रुइन्स एट सारनाथ पृ० 7 9. आर० इलियट, व्यूज इन इण्डिया भाग 2, पृ० 7 10. आ० स० रि० 1903-04, पृ० 212 11. तत्रैव, पृ० 69 12. एच० सरकार, स्टडीज इन अर्ली बुद्धिस्ट, आर्किटेक्चर ऑफ इण्डिया पृ० 58 13. रक्षित भिक्षुधर्म, पृ० 120 14. साहनी दयाराम, पूर्वोक्त, पृ० 88 15. ह्वेन सांग का भारत भ्रमण, पृ० 310-340 16. एस० बील, रेकार्डस ऑफ बुद्धिस्ट रिलिजन, पृ० 29 17. वाशुदेव शरण अग्रवाल, सारनाथ, पृ० 64