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श्रमण-संस्कृति विशाल स्तूप माना है। संभवतः यही विशाल स्तूप था जिसकी चीनी यात्रियों ने वर्णन किया है।"
चौखण्डी स्तूप से कुछ दूरी पर धामेख स्तूप स्थित है। जिसके संबंध में विद्वानों में मतभेद है। संभवत: इसी स्थान पर बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी कि मैत्रेय बुद्ध का जन्म यहीं होगा। घने वन के मध्य यह स्तूप बिना किसी आश्रय के गगनचुंबी रूप में स्थित है जो मूलतः मौर्यकाल में स्थापित हुआ था तथा गुप्तकाल में इसका जीर्णोद्धार हुआ तथा इस स्तूप की कलाओं का अनेक विद्वानों द्वारा उल्लेख किया है। सर्वप्रथम कनिंघम द्वारा यहाँ 1836 ई० में वैज्ञानिक ढंग से उत्खनन प्रारम्भ कराया गया जिससे एक विशाल लेखांकित पट्टिका स्तूप में ऊपरी भाग से चार फुट नीचे मिली थी। जिस पर छठी शताब्दी का एक लेख अंकित था यथा - ये धर्मा हेतु प्रभवा हेतु तेष्यान् तथागतस्य वदत्।
तेषश्च यो निरोधः एवं वादी महाश्रमणः । कनिंघम का अनुमान है कि यह स्तूप छठी शताब्दी में स्थापित हुआ होगा। किन्तु फोगल का कथन है कि यह लिपि सातवीं- आठवीं शताब्दी की है। धमेख स्तुप एक ठोस गोलाकार बुर्ज के रूप में है, जिसका व्यास 28.35 मी० तथा ऊंचाई 39 मी० है। इसमें लगे ईंटों की लम्बाई चौडाठ और मोटाई क्रमश: 14 1/2" x 8 1/2" x 2 1/2" है जो स्तूप में विद्यमान है। इस स्तूप के नाम के संबंध में कनिंघम का अनुमान है कि धामेख धर्मोपदेश का परिवर्तित रूप है। जबकि वाशुदेव उपाध्याय का कथन है कि धामेख शब्द धर्म का असांस्कृतिक रूप है। साहनी एवं स्मिथ के अनुसार धामेख शब्द का अर्थ संस्कृत एवं धर्मेक्षा है। वेनिश ने भो धामेख को धर्मेक्षा माना है। आर० सी० मजूमदार के अनुसार धामेख शब्द पालि का धम्मक तथा संस्कृत का धर्मेक्ष ही है।
__12वीं शताब्दी की मिट्टी की एक मोहर पर धमाक जयतु उल्लिखित है जिससे प्रतीत होता है कि किसी समय इस स्तूप का नाम धमाक था। यह स्तूप बिल्कुल ठोस है जिसके मध्य में निधान गृह नहीं है और नीचे का भाग मोटी एवं चौड़ी ईंटों से निर्मित है। इसकी सतह में प्रस्तर लगे हैं और स्तूप