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राजस्थानी जैन साहित्य
4. समयसुंदर
समयसुंदर ने यथा-प्रसंग अपनी रचनाओं में अपना सामान्य परिचय देने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार वे सांचोर में जन्मे थे। वे खरतरगच्छीय युग प्रधान जिनचंद्र सूरि के मुख्य शिष्य चन्द्रधर उपाध्याय के शिष्य थे। समयसुंदर ने अपने गुरु की आज्ञानुसार यात्राएं कीं । इनमें से प्रमुख यात्राएं-मुलतान, लाहोर, अहमदाबाद, खम्भात, आगरा, मारोठ, मेड़ता, नागोर, रणकपुर, पाटण, जालोर, जैसलमेर आदि थे। इन्हीं नगरों के उपासरों में रहकर समय सुंदर ने छोटी-बड़ी लगभग 500 रचनाओं का निर्माण किया। वि.सं. 1672-1685 तक वे प्रायः नागौर जनपद में आते रहे और यहां रहते हुए उन्होंने निम्नलिखित रचनाओं का निर्माण किया1. समयचारी शतक (भाषा संस्कृत, वि.सं. 1672, मेड़ता नगर में) 2. विशेष शतक (भाषा संस्कृत, वि.सं. 1672, मेड़ता नगर में रचित, पत्र 67)4 3. क्षमाबत्तीसी (भाषा-राजस्थानी-गुजराती, नागोर नगर में रचित)5 4. सिंहलसुत प्रियमेलक रास (भाषा-राजस्थानी-गुजराती वि.सं. 1672, मेड़ता नगर
में रचित) 5. नलदमयन्तीरास (राजस्थानी-गुजराती, वि.सं. 1667, मेड़ता नगर में रचित) 6. शत्रुजयरास (राजस्थानी-गुजराती, वि.सं. 1682, नागौर नगर में रचित)8 7. सीताराम प्रबन्ध चौपई (राजस्थानी-गुजराती, वि.सं. 1683, मेड़ता नगर में
विरचित)
1. सीताराम चौपई : ग्रंथांक 3958, रा. प्रा. वि. प्र., जोधपुर 2. (क) अर्थरत्नावली (अष्टलक्ष्मी की प्रशस्ति) पीटरसेन रिपोर्ट नं. 1174, पृ.68
(ख) सं. मो. ला. द. चंद देसाई - आनंदकाव्य महौदधि, मौ.7, पृ. 17-18 3. आनंदकाव्य महोदधि, मौ.7, पृ. 23-26 4. वही 5. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह.अं.8422(15), पत्र 80-82 . 6. वही, ह. ग्रंथांक 261 7. वही,ग्रं. 3889 8. वही, ग्रं. 10954 9. वही, ग्रं. 3958