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________________ जैन देवियां एवं तत्सम्बन्धी जैन रचनाएं 53 विशिष्ट महत्व है। जैन भक्ति में देवियों के दो स्वरूप दृष्टिगत होते हैं-64 योगिनियों के रूप में और चौबीस तीर्थकरों की शासन देवियों अथवा विद्या देवियों के रूप में। 64 योगिनियों के नाम प्राप्त ग्रन्थों एवं पुरातत्व संग्रहालयों में संग्रहीत मूर्तियों में समान नहीं है। चौबीस तीर्थंकरों की भांति ही उनकी चौबीस शासन देवियों की परिकल्पना भी जैन भक्ति में है, जिनके नाम हैं-1. चक्रेश्वरी, 2. रोहिणी, 3. प्रज्ञाप्ति, 4. पविशृंखला, 5. खड़गवरा, 6. मनोवेगा, 7. काली, 8. ज्वालिनी, 9. महाकाली, 10. मानवी, 11. गौरी, 12. गांधारी, 13. वैरोटी, 14. अनन्तमती, 15. मानसी, 16. महामानसी, 17. जया, 18. तारावती (विजया) 19. अपराजिता, 20. बहुरूपिणी (बहुल्या), 21. चामुण्डा, 22. अम्बा, 23. पद्मावती और 24. सिद्धायिका। इनमें पद्मावती, अम्बिका (अम्बा), चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनी, सच्चियामाता, सरस्वती और कुरुकुल्ला आदि सात देवियों की विशिष्ट मान्यता है। इन देवियों की भक्ति में अनेक जैन भक्त कवियों ने स्तोत्रों, ढालों, छन्द, वचनिका आदि नामों से उल्लेखनीय रचनाएं बनाई है। इनमें से कुछ रचनाएं निम्नलिखित हैं1. कीर्तिमेरू कृत अंबिका छंद (वि.सं.1487) सुधारु कृत प्रद्युम्नचरित्र का स्तुति अंश, विजयकुशल कृत शारदा छंद (वि.16 वीं शती) जिनप्रभसूरि कृत विधिप्रभा (वि.16 वीं शती) विनयसमुद्र कृत रोहिणेय रास (वि.स. 1605) कुशललाभ कृत जगदंबा छंद अथवा भवानीछंद (वि.17 वीं शती) 7. कुशललाभ कृत महामाई दुर्गा सातसी (वि. 17 वीं शती) 1. (क) जिनप्रभसूरिकृत विधिप्रभा, (ख) चतुः षष्टियोगिनी स्तोत्रम्, (ग) 64 योगिनी स्तोत्र-श्री अगरचंद नाहटा का लेख; शोध पत्रिका, वर्ष 14, अंक 1 (घ)64 योगिनी नामावली (ङ) चतुः षष्टि योगिनी यंत्र-वही, वर्ष 14, अंक 3 2. भेजधार के 64 योगिनियों के मन्दिर की मूर्तियों पर वर्णित नाम
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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