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________________ राजस्थानी जैन साहित्य की रूप-परम्परा उडिंगल - नाममाला !" (ख) काव्याशास्त्रीय ग्रंथ - पिंगलशिरोमणि, दूहाचंद्रिका, वृत्तरत्नाकर, विदग्ध मुखमंडनबालावबोध इत्यादि । (ग) गणितशास्त्र - लीलावती - भाषा चौपाई, गणितसार- चौपाई, गणित साठिसो इत्यादि । (घ) ज्योतिष शास्त्र – पंचांग - नयन चौपाई, शकुनदीपिका चौपाई, अंगपुरकन चौपाई, वर्षफलाफल सज्झाय आदि 12 गद्य - साहित्य (19) जैनियों ने पद्य के साथ-साथ राजस्थानी को श्रेष्ठ कोटि की गद्य रचनाएं भी दी हैं । हिन्दी ग्रन्थ के विकास क्रम की भी यही परम्परा प्रथम सोपान हैं । जैनियों द्वारा लिखित गद्य के दो रूप मिलते हैं-गद्य-पद्य मिश्रित तथा शुद्ध गद्य । गद्य-पद्यमिश्रित गद्य संस्कृत - चम्पू साहित्य के समान ही वचनिका साहित्य के नाम से अभिहित है । चारण गद्य साहित्य में अनेक वचनिकाएं लिखी गई है। जैन शैली में इस परम्परा की उपलब्ध रचनाएं हैं-जिनसमुद्रसूरि री वचनिका, जयचन्दसूरिकृत माताजी री वचनिका (18 वीं शती वि.) । - टब्बा - बालावबोध : :: (20) टीका-ट 15 काव्य, आयुर्वेद, व्याकरण प्रभृति मूल रचनाओं के स्पष्टीकरण के लिए पत्रों के किनारों पर जो संक्षिप्त गद्य - टिप्पणियां हाशिये पर लिखी जाती हैं उन्हें टब्बा तथा विस्तृत स्पष्टीकरण को बालावबोध कहा जाता है । विस्तार के कारण बालावबोध सुबोध होता है । इसमें विविध दृष्टान्तों का भी प्रयोग किया जाता है। मूल पाठ पृष्ठ के बीच में अंकित होता है । इस शैली में लिखित साहित्य ही टीका कहलाता है । राजस्थानी जैन टीका साहित्य समृद्ध है। उल्लेखनीय टीकाएं निम्नलिखित है धूर्ताख्यानकथासार, माधवनिदान टब्बा, वैद्य जीवन टब्बा, शतश्लोकी टब्बा, पथ्यापथ्य टब्बा, विवाहपटुल बालावबोध, भुवनदीपक बालावबोध, मुहुर्त्तचिंतामणि बालावबोध, भर्तृहरि भाषा टीका इत्यादि । 3 1. परम्परा, भाग 13 2. 3. पूज्यप्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज अभिनन्दन ग्रंथ, पृ. 464 वही, पृ. 464
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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