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राजस्थानी जैन साहित्य की रूप- परम्परा
कारण यह अन्तर लक्षित नहीं होता था । विविध काव्य रूप और विषय अब तक पूर्णतः विकसित हो चुके थे। श्री अगरचंद नाहटा ने इन काव्य रूपों अथवा विधाओं की संख्या निम्नलिखित 117 शीर्षकों में बताई हैं
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(1) रास, (2) संधि, (3) चौपाई, (4) फागु, (5) धमाल, (6) विवाहलो, (7) धवल, (8) मंगल, (9) वेलि, (10) सलोक, (11) संवाद, (12) वाद, (13) झगड़ो, (14) मातृका, (15) बावनी, (16) कछा, ( 17 ) बारहमासा, (18) चौमासा, (19) कलश, (20) पवाड़ा, (21) चर्चरी, (22) जन्माभिषेक, (23) तीर्थमाला, (24) चैत्य परिपाटी, (25) संघ वर्णन, (26) ढाल, (27) ढालिया, (28) चौढालिया (29) छढालिया, (30) प्रबन्ध, ( 31 ) चरित्र, (32) सम्बन्ध, (33) आख्यान, (34) कथा, ( 35 ) सतक, (36) बहोत्तरी, (37) छत्तीसी, (38) सत्तरी, (39) बत्तीसी, ( 40 ) इक्कीसी, ( 41 ) इकत्तीसो, (42) चौबीसो (43) बीसी, (44) अष्टक, ( 45 ) स्तुति, ( 46 ) स्तवन, ( 47 ) स्तोत्र, (48) गीत, ( 49 ) सज्झाय, ( 50 ) चैत्यवंदन, (51) देववन्दन, ( 52 ) वीनती, ( 53 ) नमस्कार, (54) प्रभाती, (55) मंगल, (56) सांझ, (57) बधावा, (58) गहूंली, (59) हीयाली, (60) गूढ़ा, (61) गज़ल, (62) लावणी (63) छंद, (64) नीसांणी, (65) नवरसो, (66) प्रवहण, (67) पारणो, (68) बाहण, (69) पट्टावली, (70) गुर्वावली, (71) हमचड़ी, (72) हींच, (73) माल-मालिका, (74) नाममाला, (75) रागमाला, (76) कुलक, (77) पूजा, (78) गीता, (79) पट्टाभिषेक, (80) निर्वाण, (81) संयम (82) श्री विवाह - वर्णन (82) भास (83) पद, ( 84 ) मंजरी, (85) रसावली, (86) रसायन, ( 87 ) रसलहरी, (88) चन्द्रावला, (89) दीपक (90) प्रदीपिका, (91) फुलड़ा, (92) जोड़, (93) परिक्रम, (94) कल्पलता, (95) लेख (96) विरह, (97) मंदड़ी, (98) सत, (99) प्रकाश, (100) होरी, (101) तरंग, (102) तरंगिणी, (103) चौक, (104) हुंडी, (105) हरण, (106) विलास, (107) गरबा, (108) बोली, (109) अमृतध्वनि, (110) हालरियो, (111) रसोई, (112) कड़ा, (113) झूलणा, (114) जकड़ी, (115) दोहा, (116) कुंडलिया, (117) छप्पय । 1
इन नामों में विवाह, स्तोत्र, वंदन, अभिषेक, आदि से सम्बन्धित नामों की पुनरावृत्ति हुई है। इसके अतिरिक्त विलास, रसायन, विरह, गरबा, झूलणा प्रभृति काव्य-विधाएँ चरित, कथा- काव्य एवं ऋतु सम्बन्धी काव्य रूप में ही समाहित हो जाते हैं । अतः इन सभी काव्यों का मोटे रूप में इस प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है—
1. भारतीय विद्या मन्दिर, बीकानेर- प्राचीन काव्यों की रूप परम्परा, पृ. 2-3