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तेरापंथ : रचनाकार और रचनाएं
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औषधि संबंधी विमर्श, साध्वी प्रमुखा श्री कानकुमारी जी का स्वर्गवास, युवाचार्य पद प्रदान हेतु पूर्व तैयारियां, युवाचार्य और संघ को शिक्षा, काल गणी का स्वर्गवास, मातुश्री की साहस सम्पृक्त मनः स्थिति का वर्णन हुआ है।
कवि ने संपूर्ण रचना में घटनाओं का संयोजन कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया है कि पात्रों की चरित्रगत विशेषता स्वतः उद्घाटित होती चलती है। अपनी अनुभूति को व्यंजित करने हेतु कवि आचार्य तुलसी ने राजस्थानी भाषा को माध्यम बनाया है। इस अभिव्यक्ति को जनप्रचलित अंग्रेजी और फारसी शब्दों तथा आलंकारिक-मुहावरेयुक्त भाषा ने और अधिक संप्रेषणीयता प्रदान की है। 6. माणकमहिमा
यह भी आचार्य तुलसी द्वारा रचित कृति है । कवि ने इसका सृजन वि.सं. 2013 में सरदारशहर में किया। आचार्य तुलसी ने इस रचना में तेरापंथ के छठे आचार्य माणक गणी के जीवन चरित्र को अभिव्यक्त किया है। साथ ही, प्रसंगवश तेरापंथ के आदिप्रवर्तक आचार्य भिक्षु से लेकर वर्तमान अधिशास्ता आचार्य तुलसी (आलोच्य कृति के रचयिता) तक का विवरण भी कवि ने प्रस्तुत किया है।
कृति का आरंभ डाकुओं द्वारा हुकमचंदजी की नृशंस हत्या की घटना से होता है। पिता की मृत्यु के बाद माणकलाल जी का लालन-पालन उनके भाई लिछमनदास जी ने संभाला । आरंभ से ही बालक माणक की भक्ति के प्रति निष्ठा और जयाचार्य की कृपा से उन्हें दीक्षित किया गया। लाडनूं शहर के बाहर एक भव्य समारोह में दीक्षा संपन्न हुई। तदुपरांत रचना में जयाचार्य का सान्निध्य और उनके आचार्य पद की घटनाओं का उल्लेख है। साढ़े चार वर्ष के अल्प शासन काल के पश्चात् ढाल गणी के आचार्य पद ग्रहण के साथ ही ग्रंथ की समाप्ति है।
आलोच्य रचना लघु आकार की है। उसमें मात्र इक्कीस गीतों में माणक गणी के चरित्र को निरूपित किया गया है। 7. तथ'र कथ
मनि मोहनलाल “आमेट" की यह एक उल्लेखनीय काव्य रचना है। आदर्श साहित्य संघ चुरू ने 1971 ई. में प्रकाशित इस काव्यकृति में मुनिजी की 134 कविताएं संकलित हैं। कविताओं का मूल विषय तेरापंथ-दर्शन है जो कृति के शीर्षक से भी स्पष्ट है । कवि ने बेबाक दृष्टि से की वास्तविकता और कथनी के प्रति निष्कर्ष दिये