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राजस्थानी जैन साहित्य
2. अगड़दत्त की शिक्षा
कुशललाभ के अनुसार अपने पति की मृत्यु के उपरान्त राज्य में अपना अनादर होता देख अगड़दत्त की माता अपने पुत्र को विद्याध्ययन के लिये अपने स्वर्गीय पति की इच्छानुसार उनके मित्र उपाध्याय सोमदत्त के पास चम्पापुर भेजती हैं। यही वृतांत “वसुदेव हिण्डी” में वर्णित है, किन्तु यहां स्थान का नाम कौशाम्बी तथा गुरु का नाम आचार्य दृढ़ प्रहरी दिया गया है । इसके विपरीत उत्तराध्ययन वृत्ति, भीमकृत "अगड़दत्त रास"4 तथा सुमति द्वारा रचित अगड़दत्त मुनि चौपई में यह प्रसंग इतर रुप में प्रस्तुत हुआ है । इन “कथा" रूपों में नगरवासियों द्वारा अगड़दत्त पर व्यभिचारिता का लांछन लगाया जाता है । परिणामस्वरूप राजा उसे देश निकाला देता है और वह उज्जैन अथवा बनारस पहुंचकर गुरु से शिक्षा ग्रहण करता है। 3. मदनमंजरी का प्रणय-निवेदन
कुशललाभ आदि कवियों ने मदनमंजरी के अगड़दत्त के प्रति आसक्ति एवं प्रणय निवेदन का कारण उसके पति का विदेश-गमन कहा है। किन्तु भीमकृत 'अगड़दत्तरास' में इसका कारण उसके पति का कुबड़ा होना वर्णित है । इस अतृप्त वासनावश वह अगड़दत्त पर गवाक्ष से कंकर मारा करती है।
4. मदनमंजरी और उसके पिता के नाम अगड़दत्त से प्रणय निवेदन करने वाली नायिका के नाम और उसके कुल तथा पिता के नाम के विषय में भी इन कथारूपों में अन्तर दिखाई देता है। कुशललाभ के “अगड़दत्त रास” में नायिका का नाम मदनमंजरी है और पिता का नाम सागरसेठ ।। 'वसुदेव हिण्डी' में इसका नाम सामदत्ता
1. भण्डारकर प्राच्यविद्या मंदिर, पूना, ग्रं.605, चौ. 25-27 2. डॉ. जे. सी. जैन - प्राचीन जैन कथा-साहित्य, पृ. 13 3. वही, पृ.170 4. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर,ग्रं.27233, चौ.41-43 5. वही,ग्रंथांक 1124, चौ. 15-18 6. वही, ग्रंथांक 27233, चौ. 101-105 7. इणि अवसरि बाड़ी नइ पासि,सागर सेठी तवाड आवास ।।36 ।। साहमइ गउषि सेठि कुंअरी तेहनउं नाम मदनमंजरी ॥37 ।।
-भण्डारकर प्राच्यविद्या मंदिर, ग्रं.605