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________________ जैन-साहित्य में अगड़दत्त कथा-परम्परा एवं कुशललाभ कृत अगड़दत्तरास 91 योगी वेश बदल कर अगड़दत्त के साथ चोरी करने निकला और सागरसेवी नाम के व्यापारी के घर सेंध डाली। सेंध डाल कर लौटने पर योगी (चोर) ने कुंवर को सोये हुए अनेक मजदूरों के बीच विश्राम करने के लिए भेज दिया। थोड़ी देर बाद योगी भी वहां पहुंचा और सोये हुए मजदूरों को अपनी तलवार से मौत के घाट उतारने लगा। योगी के आचरण को देखकर कुंवर ने उस पर प्रहार किया। मरते समय योगी ने उससे कहा कि वह उसकी तलवार सामने वाले पर्वत पर खड़े पीपल के वृक्ष में रह रही उसकी बहिन वीरमती को दे दे और उससे विवाह करले । बहिन की यह प्रतीज्ञा थी कि जो उसके भाई का वध करेगा, उसी के साथ वह विवाह करेगी। अगड़दत्त पीपल के वृक्ष की ओर गया। उसने वहां गुफा में वीरमती से भेंट की। अपने भाई की हत्या का बदला लेने की दृष्टि से अगड़दत्त को पलंग पर बैठाकर वह ऊपर चली गई। अगड़दत्त त्रिया चरित्र से परिचित था, अतः वह एक ओर हट गया । वीरमती ने ऊपर से एक शिला गिरा दी । पर जब वह नीचे आई तो अगड़दत्त को जीवित पाकर स्तंभित रह गई। उसने पुनः अगड़दत्त पर तलवार से वार किया, पर कुंवर फिर भी सुरक्षित ही रहा । वीरमती और उसके खजाने को लेकर वह राजा के पास आया। राजा ने मदनमंजरी के साथ उसका विवाह कर दिया । कुंवर अगड़दत्त मदनमंजरी को साथ लेकर वसन्तपुर की ओर चला। गोकुल नामक स्थान पर उसे कुछ लोगों ने बताया कि वह मार्ग भूल गया है । जिस मार्ग से वह जा रहा है उस पर उसे नदी, केहरी, सिंह, सर्प और चोर, इन चार संकटों का सामना करना पड़ेगा। मदनमंजरी के मना करने पर भी वह उसी मार्ग पर बढ़ता रहा और मार्ग में उसे उक्त संकटों का सामना करना पड़ा। कठिनाइयों को पार कर वसन्तपुर पहुंचने पर उसके परिवार ने उसका स्वागत किया। अभंगसेन को उसने एक सरोवर के समीप स्वागतार्थ आमंत्रित कर द्वन्द्वयुद्ध में मौत के घाट उतार दिया। माता-पिता को विदा कर कुंवर अगड़दत्त मदनमंजरी के साथ सरोवर पर ही रुक गया। मदनमंजरी को अगड़दत्त की अनुपस्थिति में पर-पुरुष से संभोग करते देख कर आकाश मार्ग में विहार करता एक विद्याधर वहां उतर आया और उसे मारने को तत्पर हुआ। इसी बीच एक सांप ने मदनमंजरी को डस लिया। अगड़दत्त को जब उसकी मृत्यु का पता चला तो वह विलाप करता हुआ
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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