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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 91 तलंगपुर से वे 700 कोस दूर नवापुरी पट्टन जाते हैं व मार्ग में किसी चन्द्रप्रभु के मंदिर के दर्शन भी करते हैं। लेकिन उन्होंने इस मंदिर के निश्चित स्थान के बारे में कुछ नहीं लिखा। नवापुरी पट्टन से 300 कोस दूर स्थित तारातंबोल नगर का उन्होंने बड़ा ही सरस वर्णन किया है। इस नगर में उन्होंने अनेक जैन मंदिर, मूर्तियाँ व हस्तलिखित ग्रंथ संग्रह देखे तथा जैन मुनि के दर्शन किए। सूरत से प्रकाशित दिगम्बर जैन तीर्थ माला में तारातंबोल में किसी ‘जवला गवला' नामक शास्त्र की विद्यमानता की सूचना पद्मसिंह जी के वर्णन में हस्तलिखित ग्रंथों के विद्यमान होने की पुष्टि करती है।
बुलाकीदास जी के द्वारा किया गया तारातंबोल का वर्णन भी बड़ा ही सजीव है। वे लिखते हैं, कि वहाँ बादशाह हिन्दू है तथा जैन धर्मावलंबी है। उनका नाम जैचंद सूर, चन्द्रसूर या सूरचन्द्र है। वहाँ, जैनों के मंदिर सोने व चांदी के बने हुए हैं, मूर्तियाँ रत्नजटित हैं। राजा के साथ प्रजा भी जैन धर्मानुयायी है। यह नगर सिंधुसागर नामक नदी के किनारे पर स्थित है। इसी के अन्य संस्करण में तारातंबोल के आसपास स्थित मंदिरों की संख्या 700 दी गई है। शहर के मध्य में आदीश्वर जी के विशाल मंदिर के स्थित होने की बात लिखी है, जिसमें 108 जड़ाव की मूर्तियाँ थीं, प्रतिमाओं की वेदियाँ स्वर्ण जटित थीं, आदिश्वर जी का सिंहासन भी जड़ाऊ था। मंदिर में 700 मन सोने की ईंटों का उपयोग किया गया था तथा इस मंदिर में त्रिकाल पूजा होती थी। मुनि शील विजय जी भी तारातंबोल का लगभग ऐसा ही वर्णन करते
बुलाकीदास जी ने इस्तंबूल से आगे 500 कोस पर बब्बर देश या बाबर नगर का नामोल्लेख किया है। शील विजय जी उसे बबरकूल कहते हैं। वे लिखते हैं, कि "बबरकूल वशि पंचासे, पवन राज ईहा सुधि बसे' अर्थात् इस्तंबूल से पाँच सौ कोस दूर बबरकूल है, जहाँ पवनराज का भी निवास है। यह वर्णन बेबीलोनिया के उन मूल पुरुषों की याद दिलाता है, जो मतु या मर्तु (वैदिक मरुत) नाम के वायुदेवता के पूजक थे। शील विजय जी का बब्बरकूल स्थित पवनराज व बेबलोनिया में 'मरुत' देवता की स्थापना से प्रतीत होता है, कि यह बब्बरकूल बेबीलोनिया ही होना चाहिये। यहाँ के निवासी भारत से निकले पणि और चौल ही माने जाते हैं। बेबीलोनिया, सीरिया के दक्षिण, फारस के पश्चिम और अरब के उत्तर में स्थित प्रदेश हैं। लेकिन यात्रा मार्ग के अन्य नगरों को देखते हुए प्रतीत होता है, कि केस्पियन सागर के दक्षिणी तट पर बसे बाबुल को ही बाबर, बब्बर या बबरकूल कहा गया होगा। पद्मसिंह जी ने अजितनाथ जी के मंदिर की दूरी इस्तंबूल से उतनी ही बताई है, जितनी बुलाकीदास ने बाबर की। अतः अनुमान लगाया जा सकता है, कि वह मूर्ति बाबर में ही रही होगी। तलंगपुर की स्थिति के बारे में कुछ निश्चित कहना कठिन है। तलंग शब्द उन हूणों और तुर्कों के लिए प्रयुक्त शब्द है जो गोबी के रेगिस्तान, इस्सिकुल और सिरदरिया में