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74* जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
वप्पिलादेवी ने आषाढकृष्ण दशमी के दिन स्वाति नक्षत्र के योग में महाप्रतापी पुत्र को जन्म दिया। देवों ने उनका जन्माभिषेक सुमेरु पर्वत पर ले जाकर किया और नमिनाथ नामकरण किया।
श्री नमिनाथ जी के देह की कांति सुवर्ण के समान थी आयु दस हजार वर्ष की थी। उनकी देह पन्द्रह धनुष ऊँची थी और व्रत पर्याय ढाई हजार वर्ष थी। मुनिसुव्रत स्वामी और नमिनाथ के निर्वाण काल का अंतर छः लाख वर्ष था।"
नमिनाथ जी ढाई हजार वर्ष के हुए तब उनका राज्याभिषेक किया गया और उनका विवाह हुआ। उसके पश्चात् पाँच हजार वर्ष तक उन्होंने शासन किया। तब एक दिन दो देवकुमारों द्वारा उद्बोध प्राप्त करके उन्हें वैराग्य हो गया। वे अपने सुप्रभ नामक पुत्र को राज्य सौंपकर उत्तरकुरु नामकी पालकी में बैठकर चैत्रवन में चले गए। वहाँ उन्होंने बेला का नियम लेकर आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में सायंकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा अंगीकार की।"
धर्म-परिवार : तीर्थंकर श्री नमिनाथ जी के धर्म-तीर्थ में सुप्रभार्य आदि सत्रह गणधर थे। चार सौ पचास समस्त पूर्वो के जानकार थे। बारह हजार छह सौ व्रतधारी शिक्षक थे। एक हजार छह सौ अवधिज्ञानी थे। इतने ही केवलज्ञानी थे, पन्द्रह सौ विक्रिया ऋद्धिधारी थे, बारह सौ पचास मनः पर्यय ज्ञानी थे और एक हजार वादी थे। इस प्रकार सब मुनियों की संख्या बीस हजार थी। भंगिनी आदि पैंतालीस हजार आर्यिकाएँ थीं। एक लाख श्रावक थे और तीन लाख श्राविकाएँ थीं। असंख्यात देव तथा संख्यात तिर्यंच उनकी धर्मसभा में प्रवचन सुनते थे।"
निर्वाण : केवलज्ञान होने के पश्चात् प्रभु श्री नमिनाथ जी हजारों वर्षों तक संपूर्ण आर्यावर्त में विचरण करते हुए धर्म का उद्योत करते रहे। जब उनकी आयु का एक वर्ष शेष रहा, तब वे सम्मेद शिखर पर चले गए। वहाँ उन्होंने एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया। वैशाख कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम समय में अश्विनी नक्षत्र में नमिनाथ जी अष्टकर्मों का क्षय करके मोक्षगामी हुए। 22. श्री अरिष्टनेमि जी :
अब तक इतिहासज्ञ महावीर एवं पार्श्वनाथ को ही ऐतिहासिक पुरुष मान रहे थे। लेकिन र्वतमान के कुछ वर्षों के अनुसंधान से यह प्रमाणित हो गया, कि अरिष्टनेमि भी ऐतिहासिक थे। प्रसिद्ध कोषकार डॉ. नगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्त्वज्ञ डॉ. फूहरर, प्रो. वारनेट, कर्नल टाड, मि. करवा, डॉ. हरिसन, डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार, डॉ. राधाकृष्णन आदि अनेक विज्ञजनों ने यह मत अभिव्यक्त किया है, कि अरिष्टनेमि एक ऐतिहासिक पुरुष रहे हैं। इस संदर्भ में अनेक पुरातत्त्विक एवं साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध हो रहे हैं। काठियावाड़ प्रान्त के प्रभास पट्टन नगर में भूमि की खुदाई में एक ताम्र पत्र मिला है, जिसमें लिखा है -