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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 69
प्रकार सब मिलाकर पचास हजार मुनिराज उनके साथ थे। यक्षिला आदि साठ हजार आर्यिकाएँ थीं। असंख्यात देव और संख्यात तिर्यंच थे। इस प्रकार इन बारह सभाओं से युक्त तीर्थंकर अरनाथ जी ने अनेक वर्षों तक विभिन्न देशों में धर्म उपदेश दिए। इनके काल में पुण्डरीक वासुदेव तथा नन्दिषेण बलभद्र हुए थे।"
मोक्ष : केवलज्ञान के पश्चात 5 हजार वर्षों तक धर्म का उद्योत करते हुए प्रभु अरनाथ जी विहार करते रहे। जब आयु का एक माह शेष रहा, तब सम्मेदशिखर पर जाकर उन्होंने एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर लिया। चैत्र कृष्णा अमावस्या के दिन रेवती नक्षत्र में रात्रि के पूर्व भाग में प्रभु सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो गए।
अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ का वर्णन 'अंगुत्तर निकाय' में भी आता है। वहाँ पर तथागत बुद्ध ने अपने से पूर्व जो सात तीर्थंकर थे, उनका वर्णन करते हुए कहा कि उनमें से सातवें तीर्थकर 'अरक' थे।" अरक तीर्थकर के समय का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, कि अरक तीर्थंकर के समय मनुष्य की आयु साठ हजार वर्ष होती थी। 500 वर्ष की लड़की विवाह के योग्य समझी जाती थी। उस समय मानव को केवल छह प्रकार का कष्ट था- (1)शीत, (2)उष्ण, (3) भूख, (4)तृष्णा, (5)पेशाब, (6) मलोत्सर्ग । इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार पीडा और व्याधि नहीं थी। तथापि अरक ने मानव को नश्वरता का उपदेश देकर धर्म करने का सन्देश दिया। उनके उस उपदेश की तुलना उत्तराध्ययन के दसवें अध्ययन से की जा सकती है, अतः बुद्ध के बताये हुए अरक तीर्थंकर और अरनाथ जी एक ही हो सकते हैं। 19. मल्लिनाथ जी :
__ भरतक्षेत्र के बंगदेश में एक मिथिला नगर था। वहाँ इक्ष्वाकु वंशी काश्यपगौत्री राजा कुम्भ का राज्य था। उनकी रानी का नाम प्रभावती था। उन्होंने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल के समय अश्विनी नक्षत्र में चौदह स्वप्न देखे और मुख में प्रवेश करता हुआ एक हाथी देखा। उसी समय गर्भ में तीर्थंकर के जीव ने प्रवेश किया। नौ मास व्यतीत होने पर रानी प्रभावती ने मिगसर सुदी एकादशी के दिन जिन बालक को जन्म दिया। तब देवों ने आकर सुमेरु पर्वत पर प्रभु का जन्माभिषेक करके उनका मल्लीनाथ नामकरण किया।
यहाँ यह उल्लेखनीय है, कि दिगम्बर वांङ्गमय में भगवान मल्लिनाथ जी को पुरुष ही माना गया है, क्योंकि वे स्त्री मुक्ति के विरोधी हैं। इसके विपरीत समस्त श्वेताम्बर आगमों में तीर्थंकर मल्लिनाथ जी को स्त्री माना गया है। अतः यह उल्लेख मिलता है, कि मल्लि कुमारी नामकी पुत्री का जन्म हुआ। उनकी देह की कांति सुवर्ण के समान थी, ऊँचाई पच्चीस धनुष की थी। आयु पचपन हजार वर्ष की, तथा व्रत पर्याय चौपन हजार नौ सौ वर्ष थी। तीर्थंकर श्री अरनाथ जी और मल्लीनाथ जी के निर्वाण का अन्तरकाल एक हजार कोटि वर्ष का था।”