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आभार
इस पुस्तक के लिये मुझे अनेक श्रुत-मनीषियों, साधु-सन्तों, आचार्यों व गुरुजनों से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रेरणा व सहयोग मिला है। पुस्तक के समापन पर मैं उन सभी विलक्षण विभूतियों के प्रति श्रद्धावनत् हूँ । मुख्य रूप से पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा., आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा, उपाध्याय प्रवर श्री मानचन्द्र जी म.सा., आचार्य श्री पद्मसागर जी म.सा., आचार्य श्री धर्मधुरन्धर जी म.सा. तथा आचार्य श्री महाश्रमण जी म.सा., आचार्य श्री मणिप्रभ सागर जी म.सा., गुरुवर्या महासती हेमप्रभा श्री जी म.सा. का भी मुझ पर मंगलमय आशीर्वाद रहा। इन वन्दनीय महापुरुषों व मुनिराजों के अनन्त उपकारों की मैं सदैव ऋणी रहूँगी।
इस पुस्तक के लेखन निर्देशक, डॉ. पी.सी. जैन, निदेशक, जैन अनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रति उनकी सतत् प्रेरणा, अपरिमित सहयोग तथा सुयोग्य निर्देशन के लिए उपकृत हूँ। इन्होंने इस पुस्तक को लिखने हेतु मुझे विशेष सुविधायें प्रदान कराते हुए अपने गहन अध्ययन व अनुभव के द्वारा अनेक तथ्यों व विविध प्रमाणों के साथ मेरे विषय को विस्तार से अध्ययन करने की सही दृष्टि प्रदान की। आपके विद्वतापूर्ण सहयोग, निर्देशन तथा वात्सल्य के समक्ष मैं नतमस्तक हूँ । इनके प्रति मैं अपनी श्रद्धा को इस प्रकार अभिव्यक्त करना चाहूँगी
अप्रतीम ज्ञानमय, अनवरत क्रियाशील हैं, वो वरदायी।
श्रद्धेय सर श्री पी.सी. जैन, गुरु हमारे प्रेरणादायी ।। साथ ही डॉ. पी.सी. जैन के परिवारजन ने भी मुझे अपने परिवार के सदस्य के रूप में ही माना, उनके प्रति मैं हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।
इस पुस्तक कार्य के विषय चयन तथा साहित्य सामग्री उपलब्ध कराने में स्व. श्री जौहरीमल जी पारख साहब ने अपने पुस्तकालय सेवा मंदिर, रावटी (जोधपुर) से बहुत सहयोग प्रदान किया, इसके लिये मैं उनकी भी हार्दिक आभारी हूँ। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय पुस्तकालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, राधाकृष्णन् केन्द्रीय पुस्तकालय, जयपुर, जवाहर कला केन्द्र के पुस्तकालय तथा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर आदि संस्थानों से सन्दर्भ ग्रन्थों की सुविधाएँ प्राप्त हुई। अतः इन पुस्तकालयों से सम्बद्ध अधिकारियों के प्रति भी मैं हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ।
पुस्तक में अतिव्यवस्तता के कारण अपने पारिवारिक दायित्वों का समुचित निर्वहन न कर पाने के उपरांत भी परिवार के सभी सदस्यों की मेरे प्रति मंगल भावना,