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प्राक्कथन
इस पुस्तक की विदूषी लेखिका डॉ. श्रीमति मीनाक्षी डागा के प्राक्कथन लिखने के स्नेहपूर्ण आमन्त्रण को मैंने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया । इस पुस्तक के वर्ण्य विषय की नवीनता, मौलिकता तथा वैज्ञानिक एवं तार्किक पद्धति से उसकी प्रस्तुति अनुपम है, प्रशंसनीय है । यह पुस्तक डॉ. मीनाक्षी डागा का शोध ग्रन्थ है, जो मेरे निर्देशन में सम्पन्न किया गया है। शोध कार्य सम्पन्न होने के पश्चात इतना शीघ्र इस पुस्तक का मुद्रित होना विदुषी लेखिका की योग्यता तथा रचना के व्यापक आकर्षण के स्पष्ट प्रमाण है ।
जैन धर्म की प्राचीनता में जैन व जैनेतर साहित्य तथा उपलब्ध पुरातात्विक सामग्री के अध्ययन क्रम में लेखिका ने जैन धर्म के इतिहास का तुलनात्मक विश्लेषण किया है और निष्कर्ष रूप में जैन धर्म की प्राचीनता एवं मौलिकता सिद्ध करते हुए उसके गौरव को पुनः प्रतिष्ठित करने का सराहनीय कार्य किया है।
जैन संस्कृति ने भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर और बाद में भी मनुष्य के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, शैक्षिक आदि सभी पक्षों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हुए अधिक सक्षम बनाया है। वर्तमान में प्रचलित लिपिविद्या एवं अंक विद्या भगवान ऋषभदेव जी की देन है । जैन संस्कृति क्रमशः तीर्थंकरों एवं आचार्यों की गुरु-शिष्य परम्परा के आधार पर इतने प्राचीनकाल से आज तक विद्यमान रही है । वर्तमान युग में भगवान महावीर ने जैन धर्म - दर्शन के सत्य की मशाल को पुनः प्रज्ज्वलित किया है।
मानव की गरिमा व स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा का आगाज महावीर ने ही किया । 'व्यक्ति स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता है, सुख-दुःख के लिए वह स्वयं उत्तरदायी है ।' उन्होंने भाग्यवाद के अंधविश्वास से घिरे हुए समाज को उत्थान, बल, वीर्य, पुरुषार्थ और पराक्रम का महत्व समझाया व स्वतंत्रता और मुक्ति की सही दिशा बतायी । स्व. राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था- 'मानव की स्वतंत्रता और महत्ता का जो विचार हमें भगवान महावीर के दर्शन-चिंतन से प्राप्त हुआ है, विश्व के धार्मिक और सामाजिक इतिहास में उसका महत्व युग-युग तक अंकित रहेगा । उन के आत्मवाद और कर्मवाद के सिद्धान्त से हमें लोकतंत्र के बीज प्राप्त हुए हैं । उनके अपरिग्रहवाद के विचार से हमें समाजवाद और समतावाद की प्रेरणा प्राप्त हुई है। उनके अनेकांतवाद से धर्म निरपेक्षता का आधार सबल बना है।
भगवान महावीर के तत्वदर्शन के अनुसार जड़ और चेतन दो स्वतंत्र मूल तत्व है, जड़ कभी चेतन नहीं होता, चेतन कभी जड़ नहीं होता। दोनों की पर्यायों का परिवर्तन और