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नीति मीमांसा * 469
6. श्रावक के 14 नियम : श्रावक के परिग्रह को सीमित करने के लिए 14 नियम बताए गए हैं, जिनकी मर्यादा श्रावक प्रतिदिन निश्चित करता है। इनसे उसकी प्रवृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं तथा जीवन अनुशासित बनता है। ये चौदह नियम निम्नलिखित है।” 1. सचित्त : प्रतिदिन अन्न, फल, पानी आदि के रूप में जितनी सचित्त
वस्तुओं का सेवन करते हैं, उनकी मर्यादा निश्चित करना। 2. द्रव्य : खाने पीने सम्बन्धी वस्तुओं की मर्यादा करना। 3. विगय : घी, तेल, दूध, दही, गुड़ और मिठाई की मर्यादा करना। 4. पण्णी : जूते-मोजे, खड़ाऊ, चप्पल आदि पैर में पहनी जाने वाली
वस्तुओं की मर्यादा करना। 5. वस्त्र : प्रतिदिन पहने जाने वाले वस्त्रों की मर्यादा करना। 6. कुसुम : फूल, इत्र आदि सुगंधित पदार्थों की मर्यादा करना। 7. वाहन : सवारी आदि की मर्यादा करना। 8. शयन : शैय्या व स्थान की मर्यादा करना। 9. विलेपन : केसर, चन्दन, तेल आदि लेप किए जाने वाले पदार्थों की
मर्यादा करना। 10. ब्रह्मचर्य : मैथुन सेवन की मर्यादा करना। 11. दिशा : जितनी दिशाओं में यातायात व आवागमन की जो भी प्रवृत्तियाँ
की जाती हैं, उनकी मर्यादा करना। 12. स्नान : स्नान व जल की मर्यादा करना। 13. भक्त : अशन, पान, खादिम-स्वादिम की मर्यादा करना। 14. ताम्बूल : पान, सुपारी, चूर्ण आदि मुखावास की मर्यादा करना।
7. श्रावक की दिनचर्या-रात्रिचर्या : श्रावक का जीवन धर्ममय व्रत नियमों से बंधा हुआ एवं शील सदाचार से महकता हुआ होना चाहिये। गृहस्थ जीवन के योग्य आवश्यक क्रियाओं से परिपूर्ण होना चाहिये।
श्रावक रात दो घड़ी अथवा डेढ़ घंटा शेष रहे तब विस्तार छोड़े, उठते ही नमस्कार मंत्र का जाप करे। फिर आत्मध्यान, आत्मनिरीक्षण करे कि मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? क्या कर रहा हूँ? कहाँ जाऊँगा? मैंने यहाँ आकर क्या खोया? क्या पाया? आदि। ऐसा चिन्तन करने से प्रेरणा मिलती है।
उसके पश्चात् सामायिक प्रतिक्रमण आदि करे। महान् सन्त सतियों, तीर्थंकरों आदि का स्मरण करके भाववन्दन करे। गुरु महाराज हों, तो उनके पास जाकर वंदन करे। कम से कम नवकारसी करे। बाद में व्याख्यान श्रवण करे।
इसके पश्चात् परिमित जल से स्नान करे नियमपूर्वक भोजन करे। बाद में