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454 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
संल्लेखना व्रत के पाँच अतिचार कहे गए हैं। 24
1. इहलोगासंसप्पओगे : मैं मर कर किसी श्रेष्ठी आदि के रूप में जन्म लूँ या प्रचुर सुखभोग के साधन प्राप्त हों, ऐसी इच्छा करना । 2. परलोगासंसप्पओगे : मैं मरकर देवता आदि के रूप में जन्म लूँ। मुझे देवलोक के सुख मिले, इस प्रकार की फलाकांक्षा करना ।
3. जीवियासंसप्पओगे : मेरी जिन्दगी बहुत लंबी चले, जिससे मैं लोगों से मिलने वाली प्रशंसा लूट लूँ या मेरे कुटुम्बी जनों को मालामाल करता जाऊँ, इस प्रकार अधिक जीने की आसक्ति करना ।
4. मरणासंसप्पओगे : जल्दी मौत आ जाए तो इस दुःख से पिंड छूट जाए, इस प्रकार की मरणाकांक्षा करना ।
5. कामभोगासंसप्पओगे : मैं मानवीय या दिव्य कामभोगों को पालूँ या भोग लूँ, ऐसी आकांक्षा करना ।
संल्लेखना व्रती साधु पूर्वोक्त प्रकार से अशन, पान का, 18 पापस्थानों का, चारों कषायों का पूर्ण त्याग कर वैराग्यमय एवं आत्म जागरण में सावधान श्रमण स्थविर श्रमणों के निकट 11 अंगों का स्वाध्याय करता रहता है । आत्म ध्यान करते करते अन्त शान्तिपूर्वक मृत्यु का आलिंगन कर लेता है।
यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहूँगी कि संल्लेखना आत्मघात नहीं है। आत्मघात व्यक्ति दुःखी निराश होकर रौद्रध्यान अथवा आर्तध्यान में करता है, वह अपना जीवन और मरण दोनों ही निन्दनीय बना देता है। जबकि संल्लेखना मरण धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान में अवस्थित होकर साधक सहज, स्वाभविक रूप से आने वाली मृत्यु को आनन्दपूर्वक, शान्तिपूर्वक स्वीकार करता है, उसका स्वागत करता है । अन्त में साधक अपना जीवन और मृत्यु दोनों ही संल्लेखना मरण के द्वारा सफल, पूजनीय और अनुकरणीय बना देता है ।
दिगम्बर - श्वेताम्बर सम्प्रदाय में मान्यता - भेद -
जैन समुदाय मुख्य रूप से दो सम्प्रदायों में बंटा है- दिगम्बर सम्प्रदाय और श्वेताम्बर सम्प्रदाय । साहित्यिक भाषा में दिगम्बर का अर्थ है, वस्त्र जिसका आकाश है तथा श्वेताम्बर का अर्थ है, जिसका वस्त्र श्वेत है । इन सम्प्रदायों में जो भेद है वह तात्विक दृष्टि से नहीं है, बल्कि व्यावहारिक दृष्टि से अधिक है। दोनों सम्प्रदायों में धर्म और दर्शन के बारे में कोई मतभेद नहीं है । साधुओं के वस्त्रों, उनकी दिनचर्या, उनके भोजन ग्रहण करने के तरीकों, व्रतों, उपवासों, त्यौहारों में अन्तर है। प्रारम्भ में यह अन्तर केवल साधुओं तक ही सीमित था, लेकिन अब जैन समुदाय के सामाजिक जीवन में भी कुछ अन्तर प्रकट होने लगा है।
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के उपलब्ध साहित्य के आधार पर