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नीति मीमांसा
समाज की राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप उसकी नैतिकता से प्रभावित या निर्धारित होता है। यदि समाज हिंसा, चोरी आदि बुराइयों से मुक्त हो, तो वहाँ के लोगों में निर्भयता, प्रेम और विश्वास की भावना रहती है। राष्ट्र में चारों ओर अमन-चैन, आर्थिक समृद्धि एवं खुशहाली का वातावरण रहता है। मानव के व्यक्तित्व का विकास सशक्त एवं सुयोग्य नागरिक के रूप में होता है। फलस्वरूप एक सुदृढ़ समाज एवं राष्ट्र का निर्माण होता है।
नैतिकता समाज की बुनियाद है, आधारशिला है। इस नैतिकता या नीति का मानदण्ड क्या है? इसकी सहज परिभाषा एक मनीषी ने इस प्रकार की है -
___ "जं इच्छसि अप्पणतो जं च न इच्छसि अप्पणतो।
__ तं इच्छ परस्स वि एत्तियगं जिणसासणं।" अर्थात् जो तुम अपने लिए अच्छा समझते हो, तुम्हें जो प्रिय है, वही तुम दूसरों के लिए भी सोचो और करो, जो तुम्हें अपने लिए अप्रिय लगता है, वह दूसरों के लिए भी मत करो - धर्मशास्त्र (जिनशासन) का यही, इतना ही रहस्य है, सार है।
आचार्य ने एक सूत्र में समस्त नितिशास्त्र का मूल आधार, सिद्धान्त और केन्द्र बिन्दु दे दिया है। जीवन व्यवहार का एक सुस्पष्ट मानदण्ड निरूपित कर दिया है। श्री जेम्स सेथ नितिशास्त्र को इस प्रकार परिभाषित करते हैं - "शुभ के विज्ञान के रूप में वह (नीतिशास्त्र) आदर्श और चाहिये का सर्वोत्कृष्ट विज्ञान है।"
वस्तुतः एक 'निश्चित शुभ आदर्श' और विभिन्न प्रकार के 'चाहिये' ही मानव की निर्णय क्षमता और कर्तव्य शक्ति, कार्य करने की दिशा का निर्देशन करते हैं, उसकी दिशा को निश्चित करते हैं।
शुभ निर्णय लेने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में समान नहीं होती। कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो समयानुकूल उचित और नीतिसम्मत निर्णय ले पाते हैं। ऐसे लोग अन्तःप्रज्ञा के धनी होते हैं। लेकिन सभी की अन्तःप्रज्ञा इतनी विकसित नहीं होती, कि वे परिस्थितियों का सही विश्लेषण करके सही निर्णय ले सकें। समाज में ऐसे सामान्य व्यक्तियों की संख्या ही अधिक है। ये सामान्य व्यक्ति कुछ अन्तःप्रज्ञा से, कुछ अनुभव, कुछ शास्त्र के ज्ञान और कुछ गुरु के निर्देशन से निर्णय लेने में सक्षम हो पाते
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