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40 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
लोग आग पर पका कर खाद्य तैयार करने लगे। मिट्टी के बर्तन और भोजन पकाने की कला सिखाकर ऋषभदेवजी ने उन लोगों की समस्या हल की, इसलिए लोग उन्हें प्रजापति कहने लगे।
धर्मानुकूल लोक व्यवस्था : ऋषभदेव जी ने लोक जीवन को स्वावलम्बी बनाना आवश्यक समझा। राष्ट्रवासी अपना जीवन स्वयं सरलता से अल्पारंभ पूर्वक बिता सकें, ऐसी शिक्षा देने के लिए उन्होंने 100 शिल्प तथा असि, मसि व कृषि रूप तीन कर्मों का प्रजा के हितार्थ उपदेश दिया। शिल्प कर्म का उपदेश देते हुए आपने प्रथम कुंभकार का कर्म सिखाया। फिर वस्त्र-वृक्षों के क्षीण होने पर पटकार कर्म और गेहगार वृक्षों के अभाव में वर्धकी कर्म सिखाया, फिर चित्रकार कर्म और रोम नखों के बढ़ने पर काश्यपक अर्थात् नापित कर्म सिखाया। इन पांच मूल शिल्पों के 20-20 भेदों से 100 प्रकार के कर्म उत्पन्न हुए।' व्यवहार की दृष्टि से उन्होंने मान-उन्मान, अवमान और प्रतिमान का भी ज्ञान कराया।
लोक स्थिति एवं कला ज्ञान : लोकनायक और राष्ट्र स्थविर के रूप में उन्होंने विविध व्यवहारोपयोगी विधियों से तत्कालीन जन समाज को परिचित कराया। आपने भरत और ब्राह्मी, सुन्दरी के माध्यम से अपनी प्रजा को लेखन आदि बहत्तर (72) पुरुषों की कलाएँ और 64 महिला गुण अर्थात् स्त्रियों की कलाएँ सिखाई।
ऋषभदेव आरंभ परिग्रह की हेयता को समझते हुए भी जनहित और उदय कर्म के फल भोगार्थ आरंभयुक्त कार्य भी करते-करवाते रहे। इसका अर्थ यह नहीं, कि वे इन कर्मों को निष्पाप समझते रहे थे। उन्होंने मानव जाति को अभक्ष्य-भक्षण जैसे महारम्भी जीवन से बचाकर अल्पारम्भी जीवन जीने के लिए असि-मसि-कृषि रूप कर्म की शिक्षा दी और समझाया, कि आवश्यकता से कभी सदोष प्रवृत्ति करनी भी पड़े तो पाप को पाप समझकर निष्पाप जीवन की ओर लक्ष्य रखते हुए चलना चाहिये। यही सम्यग्दर्शीपन है।
लोक जीवन को स्वाश्रयी बनाने के साथ ही साथ उन्हें सुन्दर और स्वपर कल्याणकारी बनाने के लिए उन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को दाहिने हाथ से अठारह प्रकार की लिपियों का ज्ञान कराया तथा सुन्दरी को बायें हाथ से गणित ज्ञान की शिक्षा दी। फिर अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को पुरुष की बहत्तर कलाओं और बाहुबली को प्राणी लक्षण का ज्ञान कराया।
विशेषावश्यक भाष्य में ब्राह्मी को सिखाई गयी लिपियों के नाम इस प्रकार बताए गए हैं - 1. ब्राह्मी 2. हंस
3. भूत 4. यक्षी 5. राक्षसी
6. उड्डी 7. यवनी 8. तरुष्की
9. किरी
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