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________________ 410 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन के समान, महाहिमवन्त रुक्मी के समान और नील निषेध के समान है। क्षेत्र और कुलाचल द्विगुणित विस्तार वाले हैं। वैदिक दर्शन में वर्णित भूगोल के साथ तुलनात्मक समीक्षा : विष्णु पुराण, मत्स्यपुराण, वायुपुराण और ब्रह्माण्डपुराण आदि पुराणों में सप्तद्वीप और सप्तसागर वसुन्धरा का वर्णन आया है। महाभारत में तेरह द्वीपों का उल्लेख मिलता है। यह वर्णन जैन दर्शन की अपेक्षा बहुत भिन्न है । विष्णु पुराण में जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंञ्चद्वीप, शाकद्वीप और पुष्करद्वीप के नाम आये हैं।" ये द्वीप वण, इक्षु, सुरा, घृत, दधि, दुग्ध और मधुर जल के सात समुद्रों से घिरे हुए हैं। ये द्वीप और समुद्र गोलाकार हैं और क्रमशः एक दूसरे से द्विगुणित हैं। द्वीपावरोधक वलयाकार समुद्रों का विस्तार द्वीपों के समान है । अर्थात् जम्बूद्वीप का विस्तार लवण समुद्र के समान, प्लक्षद्वीप का इक्षु समुद्र के समान, शाल्मलद्वीप का सुरा समुद्र के समान शाक द्वीप का दुग्ध समुद्र के समान और पुष्कर द्वीप का मधुर जल समुद्र के समान है। जैन मान्यतानुसार प्रतिपादित असंख्यात द्वीप समुद्रों में जम्बूद्वीप, क्रौंचद्वीप और पुष्कर द्वीप के नाम वैदिक दर्शन में सर्वत्र आये हैं । समुद्रों के वर्णन - प्रसंग में विष्णुपुराण में जल के स्वाद के आधार पर सात समुद्र बतलाये गये हैं । जैन परम्परा में असंख्यात समुद्रों को जल के स्वाद के आधार पर सात ही वर्गों में विभाजित किया गया है। लवण समुद्र के जल का स्वाद लवण के समान, वारुणीवर समुद्र के जल का स्वाद सुरा के समान, घृतवर समुद्र के जल का स्वाद घृत के समान, क्षीरवर समुद्र के जल का स्वाद दुग्ध के समान, कालोदधि तथा स्वयंभूरमण समुद्र के जल का स्वाद शुभ स्वच्छ जल के समान और पुष्करवर समुद्र के जल का स्वाद मधुर जल के समान है ।" इस प्रकार 1. लवण, 2. सुरा, 3. घृत, 4. दुग्ध, 5. शुभोदक, 6. इक्षु और 7. मधुर जल इन सात वर्गों में समस्त समुद्र विभक्त हैं | विष्णुपुराण में 'दधि' का उल्लेख है, जैन परम्परा में इसी को शुभोदक कहा गया है। अतः जल के स्वाद की दृष्टि से सात प्रकार का वर्गीकरण दोनों ही परम्पराओं में पाया जाता है। विष्णुपुराण में शाल्मली द्वीप का कथन आया है। हरिवंशपुराण में मेरु पर्वत के दक्षिण-पश्चिम - नैर्ऋत्य कोण में सीतोदा नदी के दूसरे तट पर विषधाचल के समीप रजतमय शाल्मली बताया गया है। जम्बू स्थल की समानता रखने वाले इसी शाल्मली स्थल में शाल्मली वृक्ष है।" यह वृक्ष पृथ्वीकाय है । ऐसा लगता है, कि इस शाल्मली स्थल को ही शाल्मली द्वीप कहा गया है। जिस प्रकार वैदिक मान्यता में अन्तिम द्वीप पुष्करवर माना गया है, उसी प्रकार जैन मान्यता में मनुष्यलोक का सीमान्त यही पुष्करार्द्ध है। मनुष्यलोक की सीमा मानकर ही वैदिक मान्यताओं में द्वीपों का कथन किया गया है। जम्बूद्वीप, घातकी
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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