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तत्त्व मीमांसा * 401
कर्मक्षय की श्रृंखला में सर्वप्रथम मोहनीय कर्म क्षीण होता है और उसके क्षीण होने के अन्तर्मुर्हत बाद ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन कर्मों का भी क्षय हो जाता है। इस प्रकार चार घाति कर्मों का क्षय होने पर केवलज्ञान, केवलदर्शन प्रकट होता है और आत्मा सर्वज्ञ-सर्वदर्शी बन जाती है। फिर सभी वेदनीय आदि चार अघाति कर्म अत्यन्त विरल रूप में विद्यमान रहते हैं, जिनके कारण मोक्ष नहीं होता। जब इन अघाति कर्मों का भी क्षय होता है, तभी मोक्ष होता है और तब यह जन्म मरण का चक्र समाप्त हो जाता है। ___ मोक्ष दो प्रकार के कहे गए हैं - द्रव्य मोक्ष तथा भाव मोक्ष। पौद्गलिक कर्मों के आत्यांतिक नाश की तरह कर्म सापेक्ष कितने ही भावों का नाश भी मोक्ष प्राप्ति के पूर्व आवश्यक है। औपशमिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और कतिपय पारिणामिक भावों का नाश होने पर मोक्ष होता है। चूँकि सम्यग्ज्ञानी के आस्रव के हेतु राग-द्वेषमोह आदि भावों का अभाव होने से आस्रव भाव का अभाव होता है। आस्रव के अभाव से कर्मबंध का अभाव होता है। कर्म बन्ध का अभाव होने तथा बद्ध कर्मों की निरन्तर अनासक्त भोग से निर्जरा होने से जीव भाव-मोक्ष को प्राप्त करता है। अद्वैत वेदान्त की जीवन्मुक्ति इसी प्रकार की मानी गई है। भाव मोक्ष की अवस्था में जीव सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अव्याबाध-इन्द्रिय क्रियाओं से परे अनन्त आनन्दमय स्थिति में होता है। भाव मोक्ष-द्रव्य मोक्ष का हेतु भूत है।
चार घातिय कर्मों का क्षय करके जीव भाव मोक्ष को प्राप्त करता है। जो जीव संवर मय होता हुआ सर्व कर्मों की निर्जरा करता हुआ वेदनीय, आयु, नाम-गौत्र आदि चार अघातिय कर्मों का भी क्षय करके भव को छोड़ता है, उसे द्रव्य मोक्ष कहते हैं। द्रव्य मोक्ष वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित विदेह मुक्ति के समकक्ष है। द्रव्य-मोक्ष पूर्ण मुक्ति है। लेकिन इस मोक्ष अवस्था में भी समस्त कर्मों का ही नाश होता है, समस्त भावों का नाश नहीं होता। जैसे पारिणामिक भावों में भव्यत्व का नाश होता है, लेकिन जीवत्व, अस्तित्व आदि पारिणामिक भाव मोक्ष अवस्था में भी विद्यमान रहते हैं। क्षायिक भाव कर्मसापेक्ष होने पर भी मोक्ष में उनका अभाव नहीं होता, इसलिए क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सुख आदि भाव मोक्ष में बने रहते हैं।
मोक्ष मार्ग : मोक्ष ही प्रत्येक जीव के लिए परम उपादेय साध्य तत्व है। इस मोक्ष की प्राप्ति के लिए रत्नत्रयी रूप मोक्षमार्ग का प्रतिपादन किया गया है। रत्नत्रयी का अर्थ है- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यग्चारित्र । इस रत्नत्रयी में आत्मा के समग्र आध्यात्म गुणों का समावेश हो जाता है, आत्मिक शक्तियों की अभिव्यक्ति के लिए इस रत्नत्रयी की साधना ही सम्पूर्ण साधना है। भावों अथवा पदार्थों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है और उनका ज्ञान सम्यग्ज्ञान है तथा पंचेन्द्रिय के विषयों के प्रति वर्तता