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368 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
इसलिए लोक क्रमबद्ध या नियमबद्ध है। उसमें अन्य द्रव्यों की उपस्थिति इस बात का संकेत है, कि उनमें परस्पर संघर्ष नहीं है अथवा वे एक दूसरे के अवरोधक नहीं हैं, जो इस बात का प्रमाण देता है, कि लोक का ढाँचा स्थायी है। यह एक सैद्धान्तिक सर्तय तथ्य है, कि लोक के मध्य में गतिशील अणु द्रव्य की शक्ति के सिद्धान्त से आबद्ध हैं। यह द्रव्य-शक्ति गतिमान अणु को संसार में ही रोके रखती है, बाहर नहीं जाने देती। इस शक्ति या द्रव्य (Substance) को अधर्म द्रव्य (Medium of rest for soul and matter) कहा गया है।
___ अधर्म द्रव्य और गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)- वैज्ञानिकों की यह जिज्ञासा, कि पदार्थ किस शक्ति से आकर्षित होकर पृथ्वी की ओर आते हैं और गृह, नक्षत्र एवं तारे आदि किस आकर्षण के कारण सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। यह आकर्षण-शक्ति (Cementry force) क्या है? इस अन्वेषण के परिणाम स्वरूप जो समाधान सामने आया है, उसे विज्ञान में Theory of Gravitation गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त माना गया है। न्यूटन ने Letters to Bentlsy पुस्तक में इसके सम्बन्ध में लिखा है – “पदार्थों के लिए गुरुत्व आकर्षण आवश्यक एवं स्वाभाविक या अन्तर्वर्ती शक्ति है।........ गुरुत्वाकर्षण कुछ स्थिर और निश्चल साधनों का माध्यम है, जो निश्चित नियमों से आबद्ध है। ये साधन भौतिक हैं या अभौतिक, यह मैं पाठकों के विचार विमर्श के लिए छोड़ देता हूँ।'' न्यूटन यह निश्चय नहीं कर पाया था, कि यह शक्ति अभौतिक है अथवा भौतिक है। परन्तु पदार्थों के नीचे गिरने, ठहरने एवं चन्द्र आदि का पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने आदि में गुरुत्वाकर्षण को वह माध्यम स्वीकार करता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्माण्ड की स्थिरता (Stability of Macroscopic) का कारण गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है। इस पर वैज्ञानिकों ने पदार्थों में होने वाली स्थिरता एवं पारस्परिक आकर्षण के लिए थ्योरी ऑफ ग्रेविटेशन (Theory of gravitation) को स्वीकार किया। पहले वे उसे भौतिक मानते थे, लेकिन बाद में उसे (Non Material) अभौतिक स्वीकार किया है। न्यूटन उसे Active Force तो मानता था, किन्तु साथ ही उसे Invisible agency अदृश्य या आकार रहित साधन मानता था। इसके बाद आइन्स्टीन ने गुरुत्वाकर्षण को आकार रहित और निष्क्रिय साधन माना है। Invisible के साथ Inactive को जोड़कर आइन्स्टीन गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त की मान्यता को जैन दर्शन द्वारा मान्य अधर्म द्रव्य की व्याख्या के निकट ले आये हैं। प्रो. जी.आर. जैन के शब्दों में जैन दर्शन द्वारा अधर्म द्रव्य के सम्बन्ध में प्रतिपादित सिद्धान्त की विजय है, कि विज्ञान (Science) ने विश्व की स्थिरता में अदृश्य एवं निष्क्रिय गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) की शक्ति की उपस्थिति को स्वीकार कर लिया है अथवा उसे स्थिरता में माध्यम के रूप में स्वयंसिद्ध प्रमाण मान