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344*जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
होती है और न एक की कमी ही । अनादिकाल से इतने ही द्रव्य थे, हैं और अनन्तकाल तक रहेंगे।
2. प्रत्येक द्रव्य अपने निज स्वभाव के कारण पुरानी पर्याय को छोड़ता है, नई को ग्रहण करता है और अपने प्रवाही सत्व की अनुवृत्ति रखता है। चाहे वह शुद्ध हो या अशुद्ध, इस परिवर्तन चक्र से अछूता नहीं रह सकता । कोई भी किसी भी पदार्थ के उत्पाद और व्ययरुप इस परिवर्तन को रोक नहीं सकता और न इतना विलक्षण परिणमन ही कर सकता है, कि वह अपने सत्व को ही समाप्त कर दे और सर्वथा उच्छिन्न हो जाए।
3. कोई भी द्रव्य किसी सजातीय या विजातीय द्रव्यान्तर रुप से परिणमन नहीं कर सकता। एक चेतन न तो अचेतन हो सकता है और न चेतानान्तर ही । वह चेतन 'तच्चेत्तन' ही रहेगा और वह अचेतन ' तदचेतन' ही ।
4. जिस प्रकार दो या अनेक अचेतन पुद्गल परमाणु मिलकर एक संयुक्त समान स्कन्धरुप पर्याय उत्पन्न कर लेते हैं, उस तरह से चेतन मिलकर संयुक्त पर्याय उत्पन्न नहीं कर सकते, प्रत्येक चेतन का सदा स्वतन्त्र परिणमन रहेगा।
5. प्रत्येक द्रव्य की अपनी मूल द्रव्य- प-शक्तियाँ और योग्यताएँ समान रुप से सुनिश्चित है, उनमें हेर-फेर नहीं हो सकता। कोई नई शक्ति कारणान्तर से ऐसी नहीं आ सकती, जिसका अस्तित्व द्रव्य में न हो। इसी तरह कोई विद्यमान शक्ति सर्वथा विनष्ट नहीं हो सकती ।
6. द्रव्यगत शक्तियों के समान होने पर भी अमुक चेतन या अचेतन में स्थूलपर्याय-सम्बन्धी अमुक योग्यताएँ भी नियत हैं । उनमें जिसकी सामग्री मिल जाती है, उसका विकास हो जाता है। जैसे कि प्रत्येक पुद्गलाणु में पुद्गल की सभी द्रव्य योग्याताएँ रहने पर भी मिट्टी के पुद्गल ही साक्षात् घड़ा बन सकते हैं, कंकड़ों के पुद्गल नहीं, तन्तु के पुद्गल ही साक्षात् कपड़ा बन सकते हैं, मिट्टी के पुद्गल नहीं । यद्यपि घड़ा और कपड़ा दोनों ही पुद्गल की पर्यायें हैं। हाँ, कालान्तर में परम्परा से बदलते हुए मिट्टी के पुद्गल भी कपड़ा बन सकते हैं, और तन्तु के पुद्गल भी घड़ा। तात्पर्य यह है, कि- संसारी जीव और पुद्गलों की मूलतः समान शक्तियाँ होने पर भी विशिष्ट स्थूल पर्याय में विशेष शक्तियाँ ही साक्षात् विकसित हो सकती हैं। शेष शक्तियाँ बाह्य सामग्री मिलने पर भी तत्काल विकसित नहीं हो सकती । 7. यह नियत है, कि किसी द्रव्य की उस स्थूल पर्याय में जितनी पर्याययोग्यताएँ है, उनमें से ही जिस-जिसकी अनुकूल सामग्री मिलती है, उसउसका विकास होता है, शेष पर्याय योग्यताएँ द्रव्य की मूल योग्यताओं की