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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 31
जैन आगमों में भी लम्बी तपस्या के कारण केश रखने से वे केशी या केशरियाजी के नाम से विश्रुत हुए। जैसे सिंह अपने केशों के कारण केशरी कहलाता है। ऋग्वेद में एक स्थान पर उनके दिव्य शासन का उल्लेख किया गया है
"मरुत्वं त वृषभं वावृधानमकवारि दिव्य शासनमिन्द्र। विश्वा साहम वसे नूतनायोग्रासदोदा मिहं ताहे येमः॥"123 ऋषभदेव के अतिरिक्त ऋग्वेद में उनकी माता मरुदेवी" पिता नाभि तथा पुत्र भरत एवं भरतवंश" का भी अनेक स्थानों पर उल्लेख किया गया है।
ऋग्वेद में ऋषभदेव की स्तुति से यह तो सिद्ध हो ही जाता है, कि जैन धर्म ऋग्वैदिक काल में विद्यमान था। लेकिन इससे यह तात्पर्य कदापि नहीं है, कि जैन धर्म ऋग्वेद का समकालीन धर्म ही था वरन् वह तो उससे भी बहुत पूर्व प्रागैतिहासिक काल में ही अस्तित्व में आ चुका था। इसका प्रमाण भी स्वयं ऋग्वेद में विद्यमान है।
ऋग्वेद में कई स्थानों पर बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि की भी स्तुति की गई है। यथा
'अरिष्टनेमि पृतनाजमाशुं स्वस्तये तार्थ्यमिहाहुवेम॥" इसके अतिरिक्त जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ शत्रुञ्जय तथा रेवतगिरी का भी उल्लेख मिलता है।
"प्रससाहिषे पुरुहूत शत्रुज्येष्ठस्ते शुष्म इह रातिरस्तु। __ इन्द्रा भर दक्षिणेना वसूनि पतिः सिन्धूनामसि रेवतानाम्॥"123
इसके अतिरिक्त ऋषभदेव से वर्द्धमान (महावीर) तक चौबीस तीर्थंकरों की, सिद्धों की स्तुति की गयी है -
"ऊँ त्रैलोक्य प्रतिष्ठातानां, चतुर्विंशति तीर्थंकराणाम्।
ऋषभादिव वर्द्धमानान्तानां, सिद्धानां शरणं प्रपद्ये ॥17 उपर्युक्त उल्लेखों से यह सिद्ध हो जाता है, कि ऋग्वेद के 10 वें मण्डल की रचनाकाल तक 24 तीर्थंकर हो चुके थे, जिनकी शरण को त्रिलोक में स्वीकार किया गया है। अर्थात् वर्द्धमान से कितने वर्षों पूर्व ऋषभदेव हो चुके थे, जिनकी स्तुतिमात्र ऋग्वेद में की गई है। वे ऋग्वेद की रचना के बहुत पूर्व ही जैन (आर्हत) धर्म का प्रतिपादन कर चुके थे। इसे हम जैन आगमों के द्वारा और अधिक स्पष्ट रूप से जान सकते हैं।
जैन दर्शन के प्रमाण : जैन आगमों में जैन दर्शन की प्राचीनता के पर्याप्त प्रमाण विद्यमान हैं। जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। जैन धर्म नाम नया है। यह नाम भगवान् महावीर के साथ जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने प्रयुक्त किया है। जैन शब्द उनके विरचित ग्रंथ विशेषावश्यक भाष्य में सर्वप्रथम प्रयुक्त किया गया है। उनके उत्तरवर्ती साहित्य में तो जैन शब्द का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। इससे पूर्व भगवान