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278 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
व केवलज्ञान। परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम। इस समस्त विभाजन को अग्र सारीणी द्वारा सहज रूप से समझा जा सकता
ज्ञान
आवृत दशा
अनावृत दशा
असाक्षात ग्राही
साक्षातग्राही
साक्षात्ग्राही
मति
केवलज्ञान
यथार्थ अयथार्थ
यथार्थ
अयथार्थ
यथार्थ
1
परोक्ष
संव्यावहारिक
प्रत्यक्ष
आगम
शब्द
परोक्ष
प्रत्यक्ष
अवग्रह ईहा अवाय धारणा स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क अनुमान
प्रमाण
वाक्यनयवाक्य
प्रत्यक्ष प्रमाण : प्राचीन काल से प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष ये दो भेद निर्विवाद रूप से स्वीकृत रहे हैं। जैसा कि हेमचंद्र सूरि लिखते हैं -
"प्रमाणं द्विधा। प्रत्यक्ष परोक्षं च। जैन दर्शन ने प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण को मौलिक रूप से परिभाषित किया है। वादि देवसूरि ने स्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष कहा है।
"स्पष्टं प्रत्यक्ष।"32 जैनागमों में आत्म मात्र सापेक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते है और जिन ज्ञानों में इन्द्रिय, मन और प्रकाश आदि पर साधनों की अपेक्षा होती है, वे परोक्ष हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने उन्हें परिभाषित करते हुए लिखा है -
"जं परदो विण्णाणं तं तु परोक्खं ति भणिदमढेसु।
जदि केवलेण णादं हवदि हि जीवेण पच्चक्खं ॥183 __ अर्थात् पर के द्वारा होने वाला जो पदार्थ सम्बन्धी विज्ञान है, वह तो परोक्ष कहा गया है, यदि मात्र जीव के द्वारा ही जाना जाए, तो वह ज्ञान प्रत्यक्ष है। प्रत्येक वस्तु अपने परिणमन में स्वयं उपादान होता है। जितने परनिमित्तक परिणमन है, वे सब