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जैन दार्शनिक सिद्धान्त * 249
(ii) तत्त्वार्थ सूत्र,8/13
(iii) कर्म ग्रंथ, 1/60 138. तत्त्वार्थ सूत्र, 6/24-25 139. (i) दाणंतराएणं, लाभंतराएणं, भोगंतराएणं, उवभोगंतशएणं वीरियंतराएणं,
अंतराएकम्मासरीरप्पयोग बंधे । भगवती सूत्र,8/9/351 (ii) दाणे लाभेय भोगेय, उवभोगे वीरिए तहा।
पंचविहमंतरायं,समासेण वियाहिंयं॥- उत्तराध्ययन,33/15 (iii) प्रज्ञापनासूत्र, पद 23/2/293 140. तत्त्वार्थ सूत्र,6/26 141. भगवती सूत्र,5/5 142. स्थानांग सूत्र,4/4/312 143. (i) बंधस्तु कर्म पुद्गलानां विशिष्ट शक्ति परिणामेनाऽवस्थानाम्। - पंचास्तिकाय, 148
(ii) स्थानांग सूत्र, 1/4/9
(iii) बन्धः आत्मकर्मणोरत्यन्त संश्लेषः । उत्तराध्ययन सूत्र, नि.शा.वृ. 4 144. कम्माणं संबंधो बंधो।- गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, 438 145. शुभाशुभानां ग्रहणं कर्मणां बन्ध इष्यते । षड्दर्शनसमुच्चय, पृष्ठ 47 146. सकषायत्वात् कर्मणो योग्यान् पुद्गलाभादत्ते, सम्बन्धः । - तत्त्वार्थ सूत्र, 8/2 147. प्रकृति स्थित्यनुभाव प्रदेशास्ताद्विधयः ॥ तत्वार्थ,8/4 148. तत्वार्थ सूत्र,8/5 149. (i) प्रदेशाः कर्मपुद्गलाः जीव-प्रदेशेष्वोतप्रोताः प्रद्रूप कर्म प्रदेशकर्म। भगवती सूत्र, वृत्ति
1/4/40 (ii) सर्वार्थसिद्धि,8/3/379 (iii) कषायपाहुड़, 2/212
(iv) तत्त्वार्थसूत्र, 8/25 150. (i) कर्म ग्रन्थ,5/85 __(ii) स्वोपात्तस्यायुष उदयात्तस्मिन् भवे शरीरेण सहाऽवस्थानं स्थितिः। - सर्वार्थसिद्धि,
8/3/379 151. कर्म ग्रन्थ, 1/18 152. तत्त्वार्थ सूत्र 8/21-22 153. शुभाशुभ-कर्मणां निर्जरा समये सुख-दुःख-फलदान-शक्ति युक्तो ह्यनुभागबन्धः।
नियमसार, ता. वृ.40 154. कम्माणं जोदु रसो अज्झवसाण-जाणिदो सुह असुहो वा बंधो सो अणुभागो... । मूलाचार,
1240 155. कर्म ग्रन्थ,5/63 156. भगवती सूत्र,1/1/1/1-6 प्र.सं. ब्यावर 157. भगवती सूत्र, 2/3