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जैन दार्शनिक सिद्धान्त 199
पंचेन्द्रिय जातिनाम ।
3. शरीर नाम : औदारिक शरीर आदि का निर्माण करने वाला कर्म । इसके पाँच भेद हैं- (i) औदारिक शरीरनाम, (ii) वैक्रियक शरीरनाम, (iii) तैजस शरीरनाम, (iv) कार्मण शरीरनाम |
4. शरीर अंगोपांग नाम : शरीर के अवयवों तथा प्रत्यवयवों का निमित्त भूत कर्म । इसके तीन भेद हैं (i) औदारिक शरीर अंगोपांगनाम, (ii) वैक्रियक शरीर अंगोपांग नाम, (iii) आहारक शरीर अंगोपांग नाम । तैजस और कार्मण शरीर के अवयव नहीं होते ।
5. शरीर बन्धन नाम: पूर्व में ग्रहण किए हुए तथा वर्तमान में ग्रहण किए जाने वाले शरीर पुद्गलों के परस्पर सम्बन्ध का निमित्त भूत कर्म । इसके पाँच भेद हैं - (i) औदारिक शरीर बन्धन नाम, (ii) वैक्रिय शरीर बन्धन नाम, (iii) आहारक शरीर बन्धन नाम, (iv) तैजस शरीर बन्धन नाम, (v) कार्मण शरीर बन्धन नाम ।
6. शरीर संघातन नाम: शरीर के द्वारा पूर्वगृहीत और ग्रमाण पुद्गलों की
यथोचित व्यवस्था करने वाला कर्म । इसके पाँच भेद हैं (i) औदारिक शरीर संघातन नाम, (ii) वैक्रिय शरीर संघातन नाम, (iii) आहारक शरीर संघातन नाम, (iv) तैजस शरीर संघातन नाम, (v) कार्मण शरीर संघातन नाम ।
7. संहनन नाम : जिसके उदय से अस्थिबन्ध की विशिष्ट रचना हो । इसके छ: भेद हैं- (i) वज्रऋषभनाराच संहनन नाम (ii) ऋषभनाराच संहनन नाम (iii) नाराच संहनन नाम (iv) अर्धनाराच संहनन नाम (v) कीलिका- संहनन नाम (vi) सेवार्त संहनन नाम ।
8. संस्थान नाम: शरीर की विविध आकृतियों का जिसके उदय से निर्माण हो। इसके भी छः भेद हैं- (i) समचतुरस्त्र संस्थान (ii) न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान (iii) सादि संस्थान नाम (iv) वामन संस्थान नाम (v) कुब्ज संस्थान नाम (vi) हुण्ड संस्थान नाम ।
9. वर्ण नाम : इस कर्म के उदय से शरीर में रंग का निर्माण होता है। इसके
भी पाँच भेद हैं- (i) कृष्ण वर्ण नाम (ii) नील वर्ण नाम (iii) लोहित वर्ण नाम (iv) हारिद्र वर्ण नाम (v) श्वेत वर्ण नाम ।
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10. गन्ध नाम : इस कर्म के उदय से शरीर के गन्ध पर प्रभाव पड़ता है इसके दो भेद हैं- (i) सुरभिगन्धनाम (ii) दुरभिगन्धनाम ।
11. रस नाम : इस कर्म के उदय से शरीर के रस पर प्रभाव पड़ता है। इसके
पाँच भेद हैं- (i) तिक्तरस नाम (ii) कटुरस नाम (iii) कषायरस नाम