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[ ६५ ] ४ मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपंचकम् ।
अष्टौ मूलगुणानाहु गृहिणां श्रमणोत्तमाः ॥ - (रस्नकरंडक श्रावका चार, श्लोक ६६ ). .......
५ हिंसासत्यस्तेयाद् ब्रह्म परिग्रहाच्चबादरभेदात् छुतान्मांसान्मद्यात् विरतिर्गृहिणोष्ट सन्त्यमी मूल गुणाः॥
( महापुराण) ६ मद्यमांस मधुत्यागैः सहोदुम्बर पंचकैः। अष्टावेते गृहस्थानां, उक्ता मूलगुणा श्रुते ।।
(भासोमदेव कृत चम्पू) ७ कल्याण आलोचना में ८ मूल गुण के स्थान पर ७ कुव्यसन ही लिये हैं ( श्लो० १२) ... पं०. जुगलकिशोर मुख्त्यारजी ने जैनाचार्यों के शासन भेद में इस विषय पर विशद चर्चा की है । प्रा० कुन्द कुन्द व श्रा० उमास्वाति जी तो अष्ट मूल गुण का नाम भी नहीं देते हैं, महा पुराण व रत्नकरंड के रचयिता इन गुणों को विरति भाव में शामिल करते हैं । और आ० सोमदेव वगैरहं सम्यक्त्व में दाखिल करते हैं। कितना विसंवाद ? ___ इनमें से किसी गुण का धारक देशविरति बन जाता है तो ८ गुण के धारक को अविरति मानना आश्चर्य के सिवाय और क्या है ! हरिवंश पुराण में, जैन दि० राजा सुदास के मांसाहार का जिक्र है यह भी अष्ट मूल गुण की मान्यता के खिलाफ प्रमाण है। आदि बातों से पता लगता है कि दिगम्बर अष्ट मूल गुण की मान्यता.असली नहीं है।
दिगम्बर-श्वेताम्बर शाल यादवों को भी मांसाहारी पताते हैं।