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________________ [ ५२ ] भावेण होइ लिंगी, गहु लिंगी होइ दव्वमित्तेण । तम्हा कुणिज्ज भावं, किं किरइ दव्वलिंगे ||४८ || माने द्रव्यलिंग, नग्नता से कुछ नहीं होता है । भावे हो गो, बाहिर लिङ्गेण किं च गग्गेण । कम्म पयडीय नियरं, गासेइ भावेण ण दव्वे ॥ ५४ ॥ निर्मम बनो ? नंगा होने से क्या ? नंगा हो जाने से कर्म का विनाश नहीं होता है । णग्गत्तणं अक्कज्जं, भावेण रहियं जिणेहिं पन्नत्तं । इय नाऊणय णिचं, भाविज्जहि अप्पयं धीर ॥ ५५ ॥ देहादिसंग रहियो, माग कसाएहिं सयल परिचितो । अप्पा अम्मर, स भावलिंगी हवे साहू ॥ ५६ ॥ देह वस्त्रादि में निर्मम और निष्कषाय मुनि भाव लिंगी है। ममति परिवज्जामि, सिम्ममत्ति मुवदिट्ठो ॥ ५७ ॥ भावो कारणभूदो, सायाराऽणयार भूदाणं ॥ ६६ ॥ ग्गो पावई दुक्खं, गग्गो संसार सायरे भमई । गग्गो ण लहइ बोहीं, जिण भावेण वजिओ सुइरं ॥ ६८ ॥ नग्नता मोक्ष का कारण नहीं है । भाव सहिदो मुणिणो, पावइ आराहणा चउकं च । भाव रहिदो य मुनिवर, भमइ चीरं दीह संसारे ॥६६॥ नंगा संसार में भटता है । सेवहि चउविहलिंगं, अभितरलिंग सुद्धिमावणो । बाहिरलिंगमकज्जं होई फुडं भावरहियाणं ।। १०६ ॥ भाव समो वि पावइ, सुक्खाई दुहाई दव्व समणो य । इइ खाउं गुण दोसे, भावेण संजुदो होइ ॥ १२७ ॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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