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[ ४] .. (६० चम्पालालजी कृत चर्चासागर पृ० ३२५ पं० परमेष्टोदास कृत, चर्चा समीक्षा पृ. २२४) ५--लिंग जह जादरूप मिदि भाणदं ॥ २४ ॥ ..
(मा० कुन्द कुन्द कृत प्रवचनसार ) सारांश यह है कि मुनि पांचों प्रकार के वस्त्र न पहिने ! नंगा. पर्म ही मुनि लिंग हैं।
जैन--मैं पहिले से ही बता चुका हूं कि श्रा० कुन्द कुन्द ने शुरू २ में पाँच प्रकार के वस्त्रों का निषेध किया, इससे तो निम्न बातें विना संशय निर्णीत होती जाती हैं। . :-श्रा० कुन्द कुन्द के समय पर्यंत जैन निर्गन्थ पाँच प्रकार के वस्त्र पहिनते हैं। .. २-उस समय तक के शास्त्रों में मुनित्रों के लिये पाँच जाति के वस्त्रों की प्राज्ञा है।
३-वस्त्र मात्र का निषेध न करके पाँच प्रकार का ही निषेध किया इससे भी पाँच ही प्रकार के वस्त्र उस समय पर्यन्त ग्रहण किये जाते थे, यह भी निर्विवाद हो जाता है।
४-दिगम्बर साधु पाँच जाति से भिन्न वस्त्र पहने तो दोष नहीं है, सिर्फ पाँच का ही त्याग होना चाहिये । क्योंकि पाँच जाति में ही परिग्रह दोष है । छटे प्रकार के वस्त्र में वह दोष नहीं है। ___५-दिगम्बर मुनि तृणज चटाई को ग्राह्य मानते हैं यानी लेते हैं । यद्यपि श्रा० देव सेन ने छठी तृणज जाति का निषेध किया किन्तु दिगम्बर मुनि उनकी एक भी नहीं सुनते । माने पाँच के अलावा छठी जाति का इस्तेमाल करते हैं और "खिदि सयण" के बजाय पट्ट पर सोते हैं। .........
६-सिर्फ पाँच जाति के वस्त्र के खिलाफ में ही यह रूलिंग