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[ २२ ] इनमें दूषण माना गया है अतः मुनियों के लिये उपाधि रखने की नहीं बल्कि उसमें मूर्छ रखने की मना है, जो बालग्ग० वगैरह गाथाओं से स्पष्ट है। .... .. . । । दिगम्बर मुनि भी मोर पीच्छ वगैरह उपधि को रखते हैं।
- दिगम्बर--दिगम्बर मुनित्रों के लिये “मोर पीच्छ" यह बाह्यलिंग है, "उपधि" है, एवं संयम का उपकरण है । इसके बिना वे कदम भी नहीं उठा सकते हैं । . ..
१-मोर पीच्छ रखने में ५ गुण है। (पं० चंपालालजी कृत चर्च सांगर चर्चा २१०) २-सप्तपादेषु निष्पिच्छः कायोत्सर्गात् विशुध्याति ॥
गपूति गमने शुद्धि मुपवासं समश्नुते ।। (चारित्र सर, तथा चर्चा सागर चर्चा ७.'
३-मुनि बिना पीच्छ ७ कदम चले तो कायोत्सर्ग रूप प्रायश्चित करें।
__(मा० इन्द्र नन्दी कृत छेद पिंडम् गा० ४० ) ४-पीछी हाथ से गीरपड़ी अर पवन का वेग अत्यंत लगा। तब स्वामी (प्रा० कुन्द कुन्द ने ) कही, हमारा गमन नहीं, क्योंकि मुनिराज का बाना विना मुनिराज पीछाणा नहीं जाय।. ..
. (एलक वनालालजी दि० जैन सरस्वति भूवन बोम्बे का गुटका में आ• कुन्द कुन्द का जीवन चरित्र, सूर्य प्रकाश श्लो० १५२ की फूट नोट पृ० ४१ से १७) . इसके अलावा दिगम्बर साधुओं को कमण्डल, पुस्तक, कलम, कागज, रूमाल, पट्टी घगैरह उपधि रखना भी अनिवार्य है। आज दिगम्बर मुनि यज्ञोपवीत देते हैं चटाई ध पट्टा पर बैठते हैं बड़े २ महलों में ठहरते हैं घास के ढेर पर सोते हैं इनकी भाक्ति के लिये साथ में मोदर रक्सी जाती है.यह सब मूछा न होने के कारस्.