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[१०] पर वे सब अधिकरण बन जाते हैं, इस आशय को स्पष्ट करने के लिये ऊपर की गाथाएं पर्याप्त हैं।
यदि ऐसा न होता तो बे प्राचार्य उपधि की आज्ञा कतई नहीं देते। किन्तु प्रत्यक्ष है कि वे ही बाद की गाथाओं में उपधि स्वी. कार की आज्ञा देते है । देखिये
छेदो जेण न विज्जदि, गहणविसग्गेसु सेवमाणस्स समणो तोणह वट्टदु, कालं खेत्तं वियाणित्ता ॥२१॥
टीका-यः किल अशुद्धोपयोगाऽविनाभावी स छेदः । अयं उपधिस्तु श्रावण्यपर्याय सहकारकारि कारण शरीर धृति हेतुभूताऽऽहार निहारादि ग्रहण विसर्जन विषय छेद प्रति षेधार्थमुपादीयमानः सर्वथा शुद्धोपयोगाऽविना भूतत्वात् प्रतिषेध एक स्यात् ।। २१ ॥ । अथाऽप्रतिषेधोपधिस्वरूप मुपदिशति।
अप्पडिकुटुं उपधिं अपत्थणिजं असंजद जणेहिं । :... मूच्छादिजणण रहिदं, गेड्णदु समणो यदि वि अप्पं॥२२॥
टीका-यः किलोपधिः बंधाऽसाधकत्वाद प्रति कुष्ठः संय मादन्यत्रानुचितत्वाद संयतजनाऽप्रार्थनीयो, रागादि परिणाम मंतरेण धार्य माणत्वा"न्मूर्छादिजनन रहित श्च"भवति स खलु "अप्रतिषिध्धः" । अतो यथोदितस्वरूप एवोपधिरुपादेयो, न पुनरन्पोपि यथोदित विपर्पस्त स्वरूपः ॥ २२ ॥ .... बालो वा बुड्डो वा, समभिहतो वा पुणो गिलाणो वा । ..चरिय चरउ सजोग्गां, मूलच्छेदं जधाण हवदि ॥ २६ ॥ ... आहारे व विहारे देशं कालं समं खमा उवधि। .. .:. जाणित्ता ते समणो, वट्टदि जदि अप्प लेवी सो ॥ ३० ॥
ट्रीकांश-१ अल्प लेपो भवत्येव तद्वर मुत्सर्गः ॥ .. ...