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व्यंतर संगमक वगेरह सामान्य जाति के देव कभी २ यहां मूल देह से भी आ जाते हैं। सूर्य और चंद्र जो ज्योतिषीओं के इन्द्र हैं वे भी मूलवैक्रिय रूप से यहां आते नहीं है और उनके असली विमान भी यहां लाये जाते नहीं है, फिर भी वे अपने मलरूप से ही अपने असली विमान में बैठकर श्रीजीके पास आये तो वह आश्चर्य रूप है ही।।
दिगम्बर-उस समय सारे भरतक्षेत्र में तो अंधेरा छा गया होगा?
जैन-सूर्य और चन्द्रने परिक्रमा और प्रकाश करने के कार्य चालु रक्खे थे, अत: अंधेरा नहीं हुआ था ।
दिगम्बर-वे विमान में बैठकर तीर्थकर के पास आवे इसी से धर्म की प्रभावना होती है, मगर वह कार्य तो उनके नकली देहसे नकली विमान में बैठ आने पर भी हो सकता है, तो संभव है कि वे इसी तरह आये होंगे?
जैन-इसी तरह तो वे कई दफे आते जाते हैं और उनमें आश्चर्य भी गीना जाता नहीं है, मगर जब 'अघटन घटना' बनती है तभी उसे 'आश्चर्य' माना जाता है। यहां वे मूल रूप से और असली विमान में आये वह 'विशेषता' है और वही 'आश्चर्य है, उसमें जैन धर्म की प्रभावना भी विशेष रूप में मानी जाती है।
दिगम्बर-यदि यह घटना वास्तविक होती तो दिगम्बर भी धर्म प्रभावना का अंग मान कर इसे स्वीकार लेता, मगर दिग. म्बरोने इसे अपनाया नहीं है, अतः शूबा होता है कि-यह घटना शायद ही बनी हो।
जैन-दिगम्बर शास्त्र इस घटना को अवश्य ही अपना लेते। मगर इस घटना के पीछे एक ऐसा सत्य छीपा हुआ है कि जो दिगम्बर मान्यता के खीलाफ में है, अत एव दिगम्बरोने अपनाया नहीं है। जो यह है
सूर्य और चंद्र अपने विमान को लेकर कौशाम्बी के समो. सरन में आये उस समय वहां चकाचौंध हो गया था, आर्या मृगावती वगेरह 'अभी तो दिवस है' ऐसे ख्याल से वहां ही बैठे