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जिमागम में यह भी खुलासा कर दिया है कि-गर्भ देवानंदा के योनिमार्ग से लिया था और कुछ चिरफाड़ करके सीधा त्रिशला के उदर में रक्खा था । बात भी ठीक है कन्या गर्भ की मोजुदगी में भगवान के गर्भ को सीधा उदरमें रखना ही उचित मार्ग था ।
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इन सब घटनाओं को मद्दे नजर रखकर शोचने से 'गर्भपरावर्त्तन' विषयक सब विचारणिय वातें हल हो जाती हैं ।
दिगम्बर इस हालत में 'त्रिशला रानी' सती मानी जायँ ? जैन - उसके सतीत्वमें कोसी भी प्रकार की बाधा आती नही है । कारण ? ८३ वे दिन गर्भपरावर्त्तन हुआ उस समय वह गर्भ म वीर्य स्वरूप था न शुक्र स्वरूप था और न प्रवाही द्रव्य था, किन्तु छ पर्याप्तिपूर्ण पांचो इन्द्रियवाला पींड रूप था, और इसमें न पर पुरुषका सेवन हुआ है, न पर वीर्य ग्रहण हुआ है न योनिमार्ग से गर्भ आया है और न स्वेच्छापूर्वक कार्य हुआ है ।
रीछमां छ महिना, गायमा नवमहिना अने दश दीवस, घोडामां भगीआर महिना अने हाथीमां बावीस महिनानो गर्भ विकास काळ होय छे. मनुष्य गर्भनो विकास काळ नव महीना अने इस दीवसनो होय छे.
(. गुजरात वर्नाक्युलर सोसाइटी अमदावाद प्रकाशित स्व० लालभाइ गुलाबदास शराफ स्मारक विज्ञान अने इन्डस्ट्रीझ ग्रंथमाळा अं. १, 'जीव विज्ञान' गर्भ पोषण प्रकार अने गर्भविकास काल पृ. २७९
प्र० ४३.
जे जातीनो गर्भ होय ते जातीना अंगोनो पूर्ण विकास गर्भमा पोषणथी अमुक काळमां थाय छे. ( जुओ गर्भपोषण अने गर्भ विकास काळ ) भा. काळने गर्भ विकास काळ कहेवामां आवे छे. भा प्रमाणे मनुष्य गर्भनो संपूर्ण विकास २८० दीवसमां थाय छे. मनुष्य गर्भना अंगोनी प्राथमिक रचना तो त्रणज महिनामा थइ जाय छे परन्तु तेमनी संपुर्ण खिलवट करवा तेमने बराबर मज - छत करवा अने तेमनो पूर्ण विकास साधी मनुष्य शरीरना पूर्ण रंग रूप अने लक्षणो आपना बीजा छ महीना जोइए छे.
पहेंला त्रण महिनामा गर्भने काचो गर्भ एम्बीओ Embeyo कहेवाम आवे छे अने पछीना छ महीनामां तेने पक्व गर्भ एटले फीटस Foetus तरीके ओळखवामां आवे छे.
( जीवविज्ञान पृ० ४४ गर्भ विज्ञान प्र० २८७ - २८८ )